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________________ (४१०) व्यापार करके अथवा अन्य वस्तु मिश्रण करके, मर्यादाकी अपेक्षा अधिक अयोग्य मूल्य बढाकर, अयोग्य रीतिसे ब्याज बढाकर, घूस ( रिश्वत ) ले या देकर, खोटा अथवा घिसा हुआ पैसा देकर, किसीके क्रयविक्रयका भंग करके, दूसरे के ग्राहकको बहकाकर खेंच लेकर, नमूना कुछ बता माल दूसरा देकर, जहां बराबर दीखता न हो ऐसे स्थानमें वस्त्रादिकका व्यापार करके, लेखमें फेरफार करके तथा ऐसेही अन्य किसी प्रकारसे किसीको भी ठगना नहीं. कहा है कि - विधाय मायां विविधैरुपायैः, परस्य ये वञ्चनमाचरन्ति । ते वञ्चयन्ति त्रिदिवापवर्गसुखान्महामोहसख : स्वमेव ॥ १ ॥" __जो लोग भांति २ का कपट करके दूसरोंको ठगते हैं, वे मानो मोहजाल में पडकर अपने आपहीको ठगते हैं. कारण कि, वे लोग कूटकपट न करें तो समय पर स्वर्ग तथा मोक्षका सुख पावें. इस परसे यह कुतर्क न करना कि, कूटकपट किये बिना दरिद्री तथा गरीब लोग व्यापारके ऊपर अपनी आजीविका किस भांति करें ? आजीविका तो कर्मके आधीन है, तो भी व्यवहार शुद्ध रखनेसे ग्राहक अधिक आते हैं व लाभ भी विशेष होता है. इस पर दृष्टान्त है किः-- एक नगरमें हेलाक नामक श्रेष्ठी था. उसके चार पुत्र थे तथा उसका अन्य परिवार भी बहुत विस्तृत था. हेलकश्रेष्ठीने तीनसेर, पांचसेर आदिके खोटे माप तौल रखे थे. तथा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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