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________________ (३९०) कहांसे होवे ? कहा है कि श्रेष्ठबाणिकने क्षत्रियव्यापारी, ब्राह्मणव्यापारी तथा शस्त्रधारी इनके साथ कभी भी व्यवहार न रखना, तथा पीछेसे विरोध करने वाले लोगोके साथ उधारका व्यापार भी न करना। कहा है कि कोई वस्तु उधार न देते संग्रह करके रखी जावे, तो भी अवसर पर उसके बेचनेसे मूलधन तो उपजेहीगा, परन्तु विरोध करनेवाले लोगोंको दिया होवे तो मूलधन भी उत्पन्न नहीं होता। जिसमें विशेष कर नट, विट (वेश्याके दलाल), वेश्या, तथा जुआरीआदिके साथ तो उधारका व्यापार कदापि न करना। कारण कि, उससे मूलधनका भी नाश होता है | ब्याजबढेका व्यापार भी मूलधनकी अपेक्षा अधिक मूल्यकी वस्तु गिरवी रखकर करना उचित है । अन्यथा वसूल करनेमे बडा क्लेश तथा विरोध होता है । समय पर धर्मकी हानि, तथा धरना देकर बेठनाआदि अनेक अनर्थ भी उत्पन्न होते हैं। इस विषयपर एक बात सुनते हैं कि:- जिनदत्त नामक एक श्रेष्ठि तथा उसका एक मुग्ध नामक पुत्र था। मुग्ध अपने नामके अनुसार बडा ही मुग्ध (भोला ) था। अपने पिताकी कृपासे वह सुखमे लीलालहर करता था। जिनदत्तश्रीष्ठिनें कुलवान नन्दवर्धनश्रेष्ठीकी कन्याके साथ धूमधामसे उसका विवाह किया। आगे जाते जब जिनदत्तने अपने पुत्रकी मुग्धता पूर्ववत् ही देखी तब गूढार्थवचनो द्वारा उसे इस भांति उपदेश किया कि, " हे वत्स !
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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