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________________ (३९१ । १ सब जगह दांतका पडदा रखना । २ किसीको ब्याजपर द्रव्य देनेके बाद उसकी उगाई न करना । ३ बंधनमे पडी हुई स्त्रीको मारना । ४ मीठा ही भोजन करना । ५ सुख ही से सोना । ६ गांव२ घर करना । ७ दरिद्रावस्था आनेपर गंगातट खोदना ८। ऊपर कही बात पर कोई संशय आचे तो पाटलीपुत्रनगरको जाकर वहां सोमदत्त श्रेष्ठी नामक मेरा मित्र रहता है, उसको पूछना" मुग्धने पिताका यह उपदेश सुना, किन्तु इसका भावार्थ उसके ध्यानमे न आया। आगे जाकर मुग्धश्रेष्ठीको बडा खेद हुआ। भोलेपनमें सर्व द्रव्य खो दिया । स्त्रीआदिको वह अप्रिय लगने लगा तथा लोगोंमें इसकी इस प्रकार हंसी होने लगी कि " इसका एक भी काम सिद्ध नहीं होता। इसके पासका द्रव्य भी खुट गया, यह महामूर्ख है।" इत्यादि । अंतमें मुग्ध पाटलीपुत्रनगरको गया व सोमदत्तश्रेष्ठीको पिताके उपदेशका भावार्थ पूछा। सोमदत्तने कहा, "१ सर्व जगह दांतका पडदा रखना अर्थात् सबसे प्रिय व हितकारी वचन बोलना। २ कोईको व्याजपर द्रव्य उधार देनेके बाद उसकी उगाई न करना अर्थात् प्रथम ही से अधिक मूल्य वाली चस्तु गिरवी रख कर द्रव्य देना कि जिससे देनदार स्वयं आकर ब्याज सहित द्रव्य पीछा दे जाय । ३. बंधनमें पड़ी हुई स्त्रीको मारना अर्थात् अपनी स्त्रीके जो संतान हो गई हो तभी उसको ताडना करना । यदि ऐसा न होवे तो वह ताडनासे रोषमें
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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