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________________ (३५८) कष्ट सहन किया, तो भी उन्हें ईशानेन्द्रपन और चमरेन्द्रपन इत्यादिक अल्प ही फल मिला. जो ज्ञानीपुरुष होवे, तथापि चित्तमें श्रद्धा न होवे तो उसे सम्यक् रीतिसे क्रियामें प्रवृत्ति नहीं होती. यहां अंगारमर्दक आचार्यका दृष्टान्त समझो, कहा है कि"अज्ञस्य शक्तिरसमर्थविधेर्निबोधस्तौ चारुचेरियममू तुदी न किञ्चित् । अन्धविहीनहतवाञ्छितमानसानां,दृष्टा न जातु हितवृत्तिरनन्तराया॥१॥ ज्ञान रहित पुरुषकी क्रियाशक्ति, क्रिया करनेमें असमर्थ पुरुषका ज्ञान और मनमें श्रद्धा न हो ऐसे पुरुषकी क्रियाशक्ति व ज्ञान ये सर्व निष्फल हैं यहां चलनेकी शक्तिवाला परन्तु मार्गसे अपरिचित अंधेका, मार्गसे परिचित परन्तु चलनेकी शक्तिसे रहित पंगुका और मार्गका ज्ञान व चलनेकी शक्ति होते हुए बुरे मार्गमें जानेके इच्छुक पुरुषका दृष्टान्त घटित होता है. कारण कि, दृष्टान्तमें कहे हुए तीनों पुरुष अंतराय रहित किसी स्थानको नहीं जा सकते. इसपर यह सिद्ध हुआ कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र इन तीनोंके योगसे मोक्ष होता है. अतः ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी आराधना करनेका नित्य प्रयत्न करना, यही तात्पर्य है। इसी प्रकार सुश्रावक मुनिराजको संयमयात्राका निर्वाह पूछे. यथाः- 'आपकी संयमयात्रा निभती है ? आपकी रात्रि सुखसे व्यतीत हुई ? आपका शरीर निर्वाध है ? कोई व्याधि आपको पीडा तो नहीं करती? वैद्यका प्रयोजन तो नहीं ?
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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