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________________ (३५९) औषध आदिका खप नहीं ? किसी पथ्य आदिकी आवश्यकता तो नहीं ?" इत्यादि ऐसे प्रश्न करनेसे कर्मकी भारी निर्जरा होती है. कहा है कि " अभिगमणवंदणनमंसणेण पडिपुच्छणेण साहूणं । चिरसंचिअंपि कम्म, खणेण विरलत्तणमुवेइ ॥१॥" साधुओंके सन्मुख जानेसे, उनको वन्दना तथा नमस्कार करनेसे, और संयमयात्राके प्रश्न पूछनेसे चिरकाल-संचितकर्म भी क्षणमात्रमें शिथिलबंधन होजाता है. प्रथम साधु. ओंको वन्दना करते समय सामान्यतः 'सुहराइ सुहदेवसी आदि शान्ति प्रश्न किया होवे तो भी विशेषकर यहां जो प्रश्न करनेको कहा, वह प्रश्नका स्वरूप सम्यक् प्रकारसे बताने के निमित्त तथा प्रश्नमें कहे हुए उपायके हेतु है, ऐसा समझो. इसीलिये यहां साधु मुनिराजके पांव छूकर इस प्रकार प्रकट निमंत्रणा करना ___ 'इच्छकारि भगवन् ! पसाय कर प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोंछनक, प्रातिहार्य पीठ, फलक, सिज्जा (पग चौड करके सो सकें वह) संथारा (जिसपर पग चौडे न हो सकें), औषध (एकवस्तुसे बनाई हुई), तथा भैषज (बहुतसी वस्तुएं सम्मिलित करके बनाया हुआ ) इनमेंसे जिस वस्तुका खप हो उसे स्वीकार कर हे भगवान् ! मेरे ऊपर अनुग्रह करो. आजकल यह
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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