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________________ ( २५८ ) करने ही से फलसिद्धि होती है, अन्यथा तत्काल अनर्थादि होते हैं । यथा: अयोध्या नगरी में सुरप्रिय नामक यक्ष था । वह प्रतिवर्ष यात्राके दिन जो रंगाया जाता था तो रंगनेवाले चित्रकारको मार डालता था, और न रंगाया जाता था तो नगरवासियों को मारता था । उस भयसे चित्रकार नगरसे भागने लगे। तब राजाने परस्पर जमानत आदि लेकर सब चित्रकारोंका मानो बंदी की भांति नगर में रखे । पश्चात् यह नियम किया कि एक घडे में सबके नामकी चिट्ठी डालें उसमें से जिसके नामकी चिट्टी निकले, वही यक्षको रंगे । एक वक्त किसी वृद्धस्त्रीके पुत्र नामकी चिट्ठी निकली । इतने में कुछ दिनसे कोशांबीनगरीसे आया हुआ एक चित्रकारका पुत्र था, उसने " निश्चय अविधिसे यक्ष रंगा जाता है " ऐसा विचार कर वृद्धखीको दृढ़ता से कहा कि - " मैं यक्षको रंगूंगा " तदनंतर उसने छठ किया, शरीर, वस्त्र, भांति भांति के रंग, कलमें (ब्रश) आदि सर्व वस्तुएं पवित्र देख कर ली, मुख पर आठपटका मुखकोष बांधा और अन्य भी उपयोग करके विधिपूर्वक उस यक्षको रंगा, और पांव छूकर खमाया । इससे सुरप्रिय यक्ष वडाही प्रसन्न हुआ और वरदान मागने को कहा, तब उसने कहा कि " हे यक्ष ! मारनेका उपद्रव न करना अर्थात् अब किसीको मत मारना । यक्षने यह बात स्वीकार की तथा प्रसन्नतासे चित्रकार पुत्रको कोई भी ""
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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