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________________ (२३८) राज्यावस्थाकी भावना करना, तथा भगवानके मस्तक व मुखका लोच किया हुआ देखनेसे भगवानकी श्रामण्यावस्था ( दीक्षा ली उस समयकी अवस्था ) तो सुखसे ज्ञात हो सके ऐसी है । ऐसेही परिवारकी रचनामें पत्रवेलकी रचना आती है, वह देखकर अशोकवृक्ष, मालाधारी देवता देखकर पुष्पवृष्टि और दोनों ओर वीणा तथा बांसुरी धारण करनेवाले देवता देखकर दिव्यध्वनिकी कल्पना करना । शेष चामर, आसन आदि प्रातिहार्य तो प्रकट ज्ञात होते हैं । ऐसे आठ प्रातिहार्य ऊपरसे भगवानकी केवली अवस्थाकी भावना करना। पद्मासनसे बैठे हुए अथवा काउस्सग्ग कर खडे हुए भगवानका ध्यान कर सिद्धावस्थाकी भावना करना । इति भावपूजा ।। बृहद्भाष्यमें कहा है कि -पांच प्रकारी, अष्टप्रकारी तथा विशेष ऋद्धि होनेपर सर्वप्रकारी पूजा भी करना। उसमे फूल, अक्षत, गंध, धूप, दीप, इन पांच वस्तुओंसे पांचप्रकारी पूजा होती है । फूल, अक्षत, गंध, दीप, धूप, नैवेद्य, फल व जल इन आठ वस्तुओंसे आठ कर्मोंका क्षय करनेवाली अष्टप्रकारी पूजा होती है। स्नात्र, अर्चन, वस्त्र, आभूषण, फल, नैवेद्य, दीप, नाटक, गीत, आरती आदि उपचारसे सर्वप्रकारी पूजा होती है। इस भांति बृहद्भाष्यादिग्रंथोंमें कहे हुए पूजाके तीन प्रकार है तथा फल,फूल आदि पूजाकी सामग्री स्वयं लावे वह प्रथम प्रकार, दूसरेके पाससे मंगावे वह दूसरा प्रकार और मनमें सर्व
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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