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________________ (२३९) सामग्रीकी कल्पना करना यह तीसरा प्रकार । इस रीतासे मन, वचन, कायाके योगसे करना, कराना तथा अनुमोदनासे कहे हुए तीन प्रकार, वैसेही पुष्प, आमिष (अशनादि प्रधान भोग्य वस्तु ), स्तुति और प्रतिपत्ति (भगवानकी आज्ञा पालना) इस रीतिसे चार प्रकारकी पूजा है वह यथाशक्ति करना। ललितविस्तरादिक ग्रंथों में तो पुष्पपूजा, आमिषपूजा, स्तोत्रपूजा और प्रतिपत्तिपूजा इन चारों पूजाओंमें उत्तरोत्तर एकसे एक पूजा श्रेष्ठ है ऐसा कहा है। आमिषशब्दसे श्रेष्ठ अशनादिक भोग्य वस्तु ही लेना । गौडकोशमें कहा है कि ___" उत्कोचे पलले न स्त्री, आमिषं भोग्यवस्तुनि " ___ अर्थात्-स्त्रीलिंग नहीं हो ऐसे आमिष शब्दके लांच,मांस और भोग्यवस्तु ऐसे तीन अर्थ होते हैं । प्रतिपत्तिशब्दका अर्थ ''तीर्थंकर भगवानकी आज्ञा सर्व प्रकारसे पालना" ऐसा है। इस भांति पूजाके आगममें कहे हुए चार प्रकार है। वैसे ही जिनेन्द्रभगवानकी पूजा द्रव्यसे और भावसे इस रीतिसे दो प्रकारकी है । जिसमें फूल, अक्षत आदि द्रव्यसे जो पूजा की जाती है वह द्रव्यपूजा और भगवानकी आज्ञा पालना वह भावपूजा है इस तरह कही हुइ दो प्रकारकी पूजा वैसे ही फूल चढाना, चन्दन चढाना इत्यादिक उपचारसे कही हुई सत्रह प्रकारी पूजा, तथा स्नात्र, विलेपन आदि उपचारसे कही हुई इक्कीस प्रकारकी पूजा, इन सर्व पूजाके प्रकारोंकाअंगपूजा, अग्रपूजा और भाव
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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