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________________ (१५७) वतीसूत्रके उन्नीसवें शतकके तीसरे उद्देशामें कहा है कि-- वज्र. मयी शिला पर अल्प पृथ्वीकाय रखकर उसको वज्रमय पत्थर ही से जो इक्कीस बार चूर्ण किया जाय तो उस पृथ्वीकायमें कितने ही ऐसे जीव रहते हैं कि जिनको पत्थरका स्पर्श भी नहीं हुआ । हरडे, खारिक, किसमिस, दाख, खजूर, मिर्च, पीपल, जायफल, बादाम, वायम, अखरोट, निमजां, अंजीर, चिलगोंजा, पिस्ता, कबाबचीनी, स्फटिकके समान सैंधव आदि सज्जीक्षार, बिड नमक आदि कृत्रिम ( बनावटा) खार, कुमार आदि लोगोंने तैयार की हुई मट्टी आदि, इलायची, लौंग, जावित्री, नागरमोथा, कोकन आदि देशमें पके हुए केले, उकाले हुए सिंघाडे; सुपारी आदि वस्तु सौ योजन ऊपरसे आई हुई होवे तो, अचित्त माननेका व्यवहार है । श्रीकल्पमें कहा है कि, लवण आदि वस्तु सौ योजन जाने के उपरान्त ( उत्पत्ति स्थानमें मिलता था वह ) आहार न मिलनेसे, एक पात्रसे दूसरे पात्र में डालनेसे अथवा एक कोठेमेंसे दूसरे कोठेमें डालने से, पवनसे, अग्निसे, तथा धुंएसे अचित्त हो जाती है ( इसी चातको विस्तारसे कहते हैं) लवण आदिक वस्तु अपने उत्पत्ति स्थानसे परदेश जाते हुए प्रतिदिन प्रथम थोडी, पश्चात् उससे अधिक, तत्पश्चात् उससे भी अधिक, इस प्रकार क्रमशः अचित्त होते हुए सौ योजन पर पहुंचती है तब तो वे सर्वथा अचित्त होजाती हैं।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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