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________________ ( १२९ ) श और स इन दोनों को समान मानकर श्रावकशब्दका अर्थ इस प्रकार होता है - प्रथम सकार मानकर " स्रवति अष्टप्रकारं कर्मेति श्रावकः " अर्थात् दान, शील, तप, भावना इत्यादिशुभयोग से आठ प्रकार के कर्मका त्याग करे, वह श्रावक है । दूसरा शकार मानकर " शृणोति यतिभ्यः सम्यक् सामाचारीमिति श्रावकः " अर्थात् साधुके पाससे सम्यक् प्रकारसे सामाचारी सुने वह श्रावक है। ये दोनों अर्थ भावश्रावककी अपेक्षा ही से हैं। कहा है कि-- जिसके पूर्व संचित अनेक पाप क्षय होते हैं, अर्थात् जीवप्रदेशसे बाहर निकल जाते हैं, और जो निरन्तरतों से घिरा हुआ है, वही श्रावक कहलाता है । 4 , " जो पुरुष सम्यक्त्वादिक पाकर प्रतिदिन मुनिराजकै पास उत्कृष्ट सामाचारी सुनता है, उसे चतुर मनुष्य श्रावक कहते हैं । जो पुरुष श्रा' अर्थात् सिद्धांत के पदका अर्थ सोचकर अपनी आगम ऊपरकी श्रद्धा परिपक्व करे, 'व अर्थात् नित्य सुकार्यमें धनका व्यय करे, तथा ' क ' अर्थात् श्रेष्ठमुनिराज की सेवा करके अपने दुष्कर्मोंका नाश कर डाले याने खपावे, इसी हेतुसे श्रेष्ठपुरुष उसे श्रावक कहते हैं । अथवा जो पुरुष 'श्री' अर्थात् पदका अर्थ मनन करके प्रवचन ऊपर श्रद्धा परिपत्र करे, तथा सिद्धांत श्रवण करे, ' व ' अर्थात् सुपात्रमें धन व्यय करे, तथा दर्शन समकित ग्रहण करे
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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