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________________ (१२८ ) उन्हें इधर उधर घुमावें वह ध्वजासमान है २ । गीतार्थ मुनिराज चाहे कितना ही समझावें परन्तु जो अपना हठ न छोडे और साथही मुनिराज पर द्वेष भाव न रखे वह श्रावक स्तंभके समान है ३। जो श्रावक सद्धर्मोपदेशक मुनिराज पर भी " तू उन्मार्ग दिखानेवाला, मूर्ख, अज्ञानी तथा मंदधर्मी है । " ऐसे निन्ध वचन कहे, वह श्रावक खरंटक (विष्ठादिक) के समान है।। जैसे पतला (विष्ठादि अशुचि ) द्रव्य, स्पर्श करनेवाले मनुष्यको भी लग ही जाता है वैसे उत्तम उपदेश करनेवालेको भी जो दोष दे वह खरंटक (विष्ठादिक) के समान कहलाता है। निश्चयनयमतसे सपत्नीसमान व खरंटकसमान इन दोनोंको मिथ्यात्वी (द्रव्यश्रावक ) समझना चाहिये और व्यवहारनयमतसे श्रावक कहलाते हैं, कारण कि वे जिन मंदिरादिकमें जाते हैं । - श्रावकशब्दका अर्थ. सवंति यस्य पापानि, पूर्वबद्धान्यनेकशः । आवृतश्च व्रतैनित्यं, श्रावकः सोऽभिधीयते ॥ १॥ संपत्तदसणाई, पइदिअहं जइजणा सुणेई अ । सामायारिं परमं, जो खलु तं सावगं विति ॥ २॥ श्रद्धालुतां श्राति पदार्थचिंतनाद्धनानि पात्रेषु वपत्यनारतम् । किरत्यपुण्यानि सुसाधुसेवनादतोऽपि तं श्रावकमाहुरुत्तमाः॥३॥ यद्वा-श्रद्धालुतां श्राति शृणोति शासनं, दानं वपत्याशु वृणोति दर्शनम् । कुंतत्यपुण्यानि करोति संयम, तं श्र वकं प्राहुरमी विचक्षणाः॥४॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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