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________________ (१२०) सकती है ? मुनिराजने उत्तर दिया- “जो तू सम्यक् रीतिसे पापकी आलोचना करके इस तीर्थमें तीव्र तपस्या करेगा तो तेरी शुद्धि हो जावेगी, कहा है किजन्मकोटिकृतमेकहेलया, कर्म तीव्रतपसा विलीयते | किं न दाह्यमति बह्वपि क्षणादुच्छिखेन शिबिनाऽत्र दह्यते?॥१॥८८९।। तत्र तपस्या करोडों जन्मके किये हुए कर्मोका क्षणमात्रमें विनाश कर देती है। क्या प्रदीप्त अग्नि चाहे कितने ही काष्ठको थोडेही समयमें नहीं जला सकता है ? " यह सुन चंद्रशेखरने प्रथम उन्हीके पास आलोचना की व दीक्षा ग्रहण की, तथा मासखमण आदि तपस्या करके वहीं वह मोक्षको गया । शुकराज शत्रुरहित राज्यको भोगता हुआ जिनप्रणीत धर्मावलंबी, सम्यग्दृष्टि राजाओंमें एक दृष्टांतरूप होगया. उसने अठाईयात्रा, रथयात्रा, तीर्थयात्रा ये तीनों प्रकारकी यात्रा, अशन, पान, खादिम, स्वादिम इन चारों प्रकारसे चतुर्विधसंघकी भक्ति तथा जिनेश्वरभगवानकी विविध प्रकारको पूजा इत्यादि धर्मकृत्य बारंबार किये । पट्टरानी पद्मावती, वायुवेगा अन्य बहुतसी राजपुत्रियां तथा विद्याधरकी पुत्री इतनी उसकी रानियां थीं। रानी पद्मावतीको साक्षात् लक्ष्मीके निवासस्थान पद्मसरोवरके समान पद्माकर नामक पुत्र हुआ तथा वायुवेगा रानीको नामानुसार गुणधारक वायुसार नामक प्रसिद्ध पुत्र हुआ। पूर्वकालमें हुए कृष्णके पुत्र शांव और प्रद्युम्नकी
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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