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________________ (११९) चाप बाहर निकलने लगा इतनेही में वास्तीवक शुकराज वहां आया, मंत्री आदि सबलोगोंने उसका पूर्ण सत्कार.. किया. सर्वलोगोंको केवल इतना ही ज्ञात हुआ कि कोई दुष्ट राजमंदिरमें घुसा था परन्तु वह अभी भाग गया. इससे विशेष वृत्तान्त किसीने न जाना । इसके बाद विमलाचल तीर्थका प्रत्यक्ष फल देखने वाला शुकराज नये तथा देदीप्यमान नानाप्रकारके विमान तथा अन्यबहुतसे आडम्बरसे सर्व मांडलिक राजा, स्वजनवर्ग विद्याधर आदिके साथ अनुपम उत्सव करता विमलाचलकी यात्राको चला । अपना कुकर्म कोई नहीं जानता है यह विचार कर शीलवान पुरुषकी भांति लेश मात्रभो शंका न रखते राजा चंद्रशेखर भी उत्सुकतासे उसके साथ आया । वहां पहुंच कर शुक राजने जिनेश्वर भगवानकी पूजा, स्तुति तथा महोत्सव करके सबको सुनाकर कहा कि. " इस तीर्थमें मंत्र साधन करनेसे मैंने शत्रुपर जय प्राप्त किया इसलिये सर्व बुद्धिमान लोगोंने इस तीर्थका नाम 'शत्रुजय' प्रगट करना चाहिये" इस भांति इस तीर्थका नाम 'शत्रुजय' पडा. और यह जगत्में अत्यंत प्रसिद्ध हो गया. - जिनेश्वर भगवानके दर्शन करके अपने दुष्कर्मकी निंदा करते चंद्रशेखरको पश्चात्ताप हुआ। दुष्कर्मके क्षयसे अपने महान उदयकी इच्छा कर शुद्ध चित्त हो उसने महोदय नामक मुनिसे पूछा कि, “ हे मुनिराज ! क्या किसी प्रकार मेरी शुद्धि हो
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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