SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८५ ) समकितको अंगीकार किया । मोहसे उन दोनोंका दिव्य तथा औदारिक संयोग बहुत काल तक रहा, श्रीदत्त अपने घर आया. राजाने उसका बहुत सत्कार किया। तत्पश्चात् उसने अपनी कन्या व आधी संपत्ति शंखदत्तको देकर शेष आधी संपत्ति सात क्षेत्रोमें विभाजित कर ज्ञानी गुरुके पास दीक्षा ग्रहण की और विहार करता हुआ अब यहां आया है। (श्रीदत्त केवली कहते हैं कि ) हे मृगध्वज राजन् ! दुस्तरमोहको जीत कर केवल ज्ञान पाया हुआ मैं वही श्रीदत्त हूं । इस भांति जो पूर्व भवमें मेरी स्त्रियां थी वे इस भवमें पुत्री तथा माता हुई, इसलिये इस संसार में यह बात कोई आश्चर्यजनक नहीं, ऐसा विचार करके विद्वान पुरुषने व्यावहारिक सत्यके अनुसार सर्व व्यवहार करना चाहिये, सिद्धान्तमें दस प्रकारका सत्य कहा है, यथा-१ जनपदसत्य, २ संमतसत्य, ३ स्थापनासत्य, ४ नामसत्य, ५ रूपसत्य, ६प्रतीत्यसत्य, ७ व्यवहारसत्य, ८ भावसत्य, ९ योगसत्य, और १० उपमासत्य अर्थात्-कुंकण आदि देशोंमें ' पय, पिच्च, नीरं, उदकं आदि नामसे पानीको जानते हैं, यह प्रथम जनपदसत्य है। २ कुमुद (श्वेतकमल) कुवलय ( नीलकमल ) आदि सब जातिके कमल कीचड ही में पैदा होते हैं तो भी अरविंद (रक्त कमल)ही को पंकज कहना यह जो लोक-सम्मत है इसे सम्मतसत्य जानों। ३ लेप्यादि प्रतिमाको अरिहंत समझना अथवा एक दो इत्यादि अंक लिखना,
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy