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________________ किंवा रुपया, पैसा इत्यादिक पर " यह रुपया है, पैसा है" ऐसे अर्थकी सूचक मुद्रा ( छाप ) करना यह स्थापनासत्य है । ४ कुलकी वृद्धि न करने पर भी 'कुलवर्धन' कहलाना यह नामसत्य है। ५ वेष मात्र धारण करने पर भी जैसे साधु कहलाता है इसे रूपसत्य कहते हैं । ६ केवल अनामिका ( टचलीके पासकी अंगुली ) कनिष्टका ( टचली अंगुली ) की अपेक्षा लम्बी और मध्यमा (बीचकी अंगुली ) की अपेक्षा छोटी कहलाती है, इसे प्रतीत्यसत्य कहते हैं । ७ पर्वतके ऊपर स्थित वृक्ष तृण आदिके जलते हुए भी पर्वत जलता है ऐसा कहा जाता है और बरतनमेंसे पानी गलता हो तो बरतन गलता है, कृश उदरवाली कन्या उदर रहित तथा जिसके शरीर पर थोडे २ रोम हो ऐसी भेड रोम रहित कहलाती है, ऐसेको व्यवहारसत्य जानो। ८ यहां भावशब्दसे वर्णादिक लेना है, अतः पांच वर्णका संभव होने पर भी बंगुला सफेद कहलाता है यह भावसत्य है । ९ दंड धारण करनेसे दंडी कहलाता है यह योगसत्य है । १० तथा 'यह तालाब तो साक्षात् समुद्र है' इत्यादि जो उपमायुक्त कहा जाता है इसे उपमासत्य कहते हैं । सत्य इतनी प्रकारके हैं इस लिये व्यवहारमें व्यवहारसत्यके ही अनुसार चलना चाहिये।" चतुर शुकराज मुनिराजके ये वचन सुन कर अपने माता पिताको “ पिता, माता" इस तरह प्रकटरूपसे बोलने लगा, जिससे सब लोगोंको संतोष हुआ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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