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________________ ( ८० ) बोले हुए बचनोंसे कर्मका संचय हो इसमें शंका ही क्या है ? गंगाने भी कामका समय बीत जाने पर आई हुई एक दासीको क्रोध से कहा कि, " अरे दुष्ट दासी ! तू अब आई है, क्या तुझे किसीने कैद कर दी थी ?" सारांश यही कि, गंगा व गौरी दोनोंने क्रोधवश समान ही कर्मों का संचय किया । एक समय बहुत से काम व्यसनी - लोगोंके साथ विलास करती हुई एक वेश्याको देख कर गंगाने विचार किया कि, "भ्रमरों का झुंड जिस भांति प्रफुल्लित मोगरेकी बेलको भोगते हैं, उसी भांति बहुत कामी - भ्रमर (लोग) जिसे भोगते हैं, ऐसी स्त्री धन्य है; तथा मेरे समान अभागिनीसे भी अभागिनीको जिसको पति तक छोड़कर परलोक चला गया, उसको बार बार धिकार है !" दुष्टमति गंगाने ऐसे आर्त्तध्यानसे वर्षाऋतुमें लौह पर चढे हुए कीटके समान पुनः कर्म संचय किया । अन्तमें मृत्युको पाकर दोनों देवलोक में ज्योतिषी- देवताकी देवियां हुई तथा वहांसे च्युत होकर गंगा तेरी माता व गौरी तेरी पुत्री हुई । पूर्वभव में दासीको दुर्वचन कहा था इससे तेरी पुत्रीको सर्प दंश हुआ और तेरी माताको इसी से भिल्लकी पल्ली में रहना पडा, तथा गणिकाकी प्रशंसा करी इससे गणिकापन भोगना पडा । पूर्व कर्म से असंभव बात भी संभव हो जाती है । बड़े खेदकी 1
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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