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________________ ( ७९ ) उसे समुद्र में डाल दिया। जिस प्रकार लेनदारका कर्ज ब्याज सहित चुकाना पडता है उसी भांति पूर्वभवके किये हुए कर्म भी यथाक्रम भोगने पड़ते हैं। तेरी दोनों स्त्रियां तेरे वियोगसे संसार-मोह छोडकर तपस्विनी होगई तथा मासखमण मासखमण (मासिक उपवास) रूप तपस्या करने लगी। विधवा होने पर कुलीनस्त्रियोंको यही उचित है । मनुष्य भव पाकर यह भव तथा पूर्व भव दोनों ही मुफ्त गुमा बैठे ऐसा कौन मूर्ख है ? एक दिन अधिक तृषा लगनेसे व्याकुल होकर मौरीने एक दासीके पाससे बहुत बार पानी मांगा । दुपहरका समय होनेके कारण निद्राके वश हुई उस दासीने ढीठ-मनुष्यकी भांति कुछ भी उत्तर नहीं दिया । गौरी यद्यपि स्वभावसे क्रोधी नहीं थी तथापि उस समय उसने दासी पर बहुत क्रोध किया । प्रायः तपस्वी, रोगी, और क्षुधा तथा तृषासे पीडित मनुष्योंको थोडेसे कारण पर ही बहुत क्रोध चढ आता है। गौरीने क्रोधसे कहा-"रे नीच ! मरे हुए मनुष्यकी भांति तूं मुझे जबाब नहीं देती है इसका क्या कारण है ?" इस तरह तिरस्कारयुक्त वचन सुनने पर दासी उठी व मधुर बचोस गौरीका समाधान करके उसे पानी पिलाया । परन्तु गौरीने, दुष्टवचनोंके कारण बहुत दुःखसे भोगनेके योग्य कर्म संचित किया । हँसीमें कहे हुए कुवचनोंसे भी जब कर्म संचय होता है तो क्रोधस
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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