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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन निर्धारण करने वाला है। यह वैडूर्य रत्न (नीलम) मय है। निषध
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार यह पर्वत जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र दक्षिण तथा मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में स्थित है ।285 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार निषध एवं नीलवन्त पर्वत का विस्तार 16842210 योजन है। इसकी ऊँचाई चार सौ योजन, गहराई 400 कोस एवं वर्ण तपाए हुए स्वर्ण के समान है। इस पर्वत के दोनों पार्श्व भागों में विभिन्न प्रकार के उत्तम वृक्षों से युक्त और तोता, कोयल, मयूर आदि पक्षियों से युक्त रमणीय वनखंड हैं।286 यह पर्वत महाविदेह क्षेत्र एवं हरिवर्ष क्षेत्र के मध्य वर्षधर (सीमाकारी) के रूप में रहा हुआ है। मंदर/सुमेरु
ज्ञाताधर्मकथांग में इसका नामोल्लेख मिलता है।287 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार विदेह क्षेत्र के मध्य दोनों कुरु क्षेत्रों के समीप निन्यानवें हजार योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है। इसकी नींव एक हजार योजन नीचे है। इस मेरु का विस्तार नींव के तल भाग में 10090 194, योजन प्रमाण है। ऊपर भद्रशाल वन के पास में इस मेरु पर्वत का विस्तार दस हजार योजन है।288 यह सर्वरत्नमय है। चारों तरफ एक पद्मवर वेदिका और एक वनखण्ड से घिरा हुआ है। इसमें भद्रशाल, नन्दन, सौमनस व पाण्डक नामक चार वन हैं तथा पाण्डक में रही हुई शिलाओं पर जो सिंहासन हैं उन पर सद्यजात तीर्थंकर प्रभु का जन्माभिषेक देवों द्वारा मनाया जाता है। अंजनगिरि
ज्ञाताधर्मकथांग में अंजनगिरि का नामोल्लेख मिलता है।28 यह पर्वत अंजन (काजल) के समान श्याम और बहुत ऊँचा है।290 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार दिशाहस्तिकूट (शिखर) मन्दर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में नैर्ऋत्य कोण में तथा दक्षिण दिशा के शीतोदा नदी के पश्चिम में है। अंजन गिरि नामक उसका अधिष्ठायक देव है। एकशैल पर्वत
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार महाविदेह के पुष्कलावती चक्रवर्ती-विजय के पश्चिम में नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में सीता महानदी के उत्तर में एकशैल नामक पर्वत बतलाया गया है।292
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