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गिरनार
ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण
ज्ञाताधर्मकथांग में गिरनार का नामोल्लेख मिलता है । 293 गिरनार पर्वत द्वारिका नगरी के पास था। जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि इसी पर्वत पर सिद्धबुद्ध और मुक्त हुए । 294 रैवतक पर्वत को संभवतया गिरनार कहा जाता है 1295 सुखावहवक्षार पर्वत
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार महाविदेह क्षेत्र के मेरु पर्वत से पश्चिम में तथा शीतोदा महानदी के दक्षिणी तट पर सुखावहवक्षार पर्वत स्थित है । 296 महाविदेह क्षेत्र की नलिन विजय में यह पर्वत स्थित है । इस विजय की अशोका नामक राजधानी है । 297
पुण्डरीक
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार पुण्डरीक और शत्रुञ्जय पर्वत एक ही है । 298 जिनप्रभसूरि ने विविध तीर्थकल्प में शत्रुञ्जय के 21 नाम बताए हैं, उनमें से एक पुण्डरीक नाम भी है 1299
वैताढ्य पर्वत
ज्ञाताधर्मकथांग में इसका नामोल्लेख मिलता है । 300 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पूर्व-पश्चिम लम्बा और उत्तरदक्षिण चौड़ा है। इसकी चौड़ाई दस योजन है। दोनों ओर पाँच-पाँच योजन ऊपर जाने पर वैताढ्य पर्वत का शिखर - तल है 1301' लोक प्रकाश' के अनुसार इसके पूर्व पश्चिम में लवण समुद्र है । इस पर्वत से भरत क्षेत्र दो भागों में विभक्त हो गया है जिन्हें उत्तर भरत और दक्षिण भरत कहते हैं 1302
शत्रुञ्जय पर्वत
ज्ञाताधर्मकथांग में इस पर्वत का नामोल्लेख मिलता है । थावच्चामुनि इसी पर्वत पर सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हुए थे। 303 शत्रुञ्जय प्राचीनकाल से ही जैनों के एक अत्यन्त महत्वपूर्ण तीर्थ के रूप में विख्यात रहा है। शत्रुञ्जय पर्वत वर्तमान में पालीताना के पास स्थित है। इसकी तलहटी में अवस्थित पालीताना नगरी में छोटे-बड़े 800 से अधिक जैन मंदिर हैं । चालुक्य और वघेल शासकों के समय यहाँ अनेक जैन मन्दिरों का निर्माण कराया गया, परन्तु मुसलमानों ने यहाँ के अधिकांश जिनालयों को नष्ट कर दिया। बाद में 15वीं से 19वीं शती तक यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण कराया गया, जिससे सम्पूर्ण पर्वतमाला और घाटी
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