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ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण रैवतक पर्वत के सन्निकट द्वारिका बसाई ।72 यह पर्वत सौम्य, सुभग, देखने के प्रिय, सुरूप, प्रसन्नता प्रदाता, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप था।73 भगवान अरिष्टनेमि ने रैवतक पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया।74 राजीमती संयम लेकर द्वारिका से रैवतक पर्वत पर जा रही थी। बीच में वर्षा से भीग गई और कपड़े सुखाने के लिए वहीं एक गुफा में ठहरी,75 जिसकी पहचान आज भी राजीमती गुफा से की जाती है। रैवतक पर्वत सौराष्ट्र में आज भी विद्यमान है, संभव है प्राचीन द्वारिका इसी की तलहटी में बसी हो।76
जैन ग्रंथों में रैवतक, उज्जयंत, उज्ज्वल गिरिणाल और गिरनार आदि नाम इस पर्वत के आए हैं।277 महाभारत में भी इस पर्वत का दूसरा नाम उज्यंत आया
है।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार रैवतक पर्वत की चन्द्रगुफा में आचार्य धरसेन ने तप किया था और यहीं पर भूतबलि और पुष्पदन्त आचार्यों को अवशिष्ट श्रुतज्ञान को लिपिबद्ध करने का आदेश दिया था।79 वैभार पर्वत
ज्ञाताधर्मकथांग में वैभार पर्वत का नामोल्लेख मिलता है।280 वैभार पर्वत पर अनेक जड़ी-बूटियाँ, सुन्दर-सुन्दर झरने, उष्ण और शीतल जल के कुंड विद्यमान हैं। सरस्वती नदी का उद्गम स्थल भी यही है। पहाड़ी की तलहटी में राजगृह नामक सुन्दर नगरी बसी हुई है।281 विन्ध्याचल
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार यह पर्वत जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में दक्षिणार्थ भरत में गंगा महानदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।282 यह पर्वतमाला सामान्य रूप से बिहार प्रान्त की पश्चिमी सीमा से प्रारंभ होकर अनेक शाखाओं-प्रशाखाओं में विभक्त होकर दक्षिण-पश्चिम दिशा में गुजरात (काठियावाड़) तक पहुंचती है
और इस प्रकार यह पर्वतमाला सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में फैली हुई है। वर्तमान में मिर्जापुर शहर से 6 कि.मी. दूर स्थित पहाड़ी, जहाँ विन्ध्वासिनी देवी का एक महिमाशाली मंदिर है, विन्ध्याचल के नाम से जानी जाती है।283 नीलवन्त
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार यह पर्वत जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र के उत्तर में स्थित है ।284 यह पर्वत रम्यक्वर्ष क्षेत्र एवं महाविदेह क्षेत्र के बीच सीमा
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