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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन छेड़ियाँ व मोरियाँ आदि भी होती थी। 266
प्रपा / प्याऊ
ज्ञाताधर्मकथांग में एकाधिक स्थानों पर प्याऊ का उल्लेख मिलता है 1267 उक्त संदर्भों के आधार पर कहा जा सकता है कि ये प्याऊ नगरों, उद्यानों, वनखण्डों के साथ-साथ मार्गों पर बनाई जाती थी । इनके निर्माण के पीछे जनकल्याण की भावना थी ।
इन सबकी निर्माण प्रक्रिया में कौन-कौनसी निर्माण सामग्री प्रयुक्त होती थी, सीधे तौर पर कुछ भी कह पाना संभव नहीं है, लेकिन उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि भवनों आदि में शिलाओं व प्रस्तरखण्डों का प्रयोग किया जाता होगा । बहुमंजिले आवासों के उल्लेख से यह अनुमान करना युक्तिसंगत होगा कि छत को मिट्टी, लकड़ी व प्रस्तर खण्डों से बनाया जाता होगा। इनकी नींव और दीवारों को मजबूत बनाने की दृष्टि से उनमें प्रस्तरखण्ड और ईंटों का प्रयोग भी होता होगा । ज्ञाताधर्मकथांग के आधार पर यह अवश्य कहा जा सकता है कि उस समय के भवनों आदि में विविध प्रकार के रत्न, मणियाँ, शंख, प्रवाल, मूंगा, मोती, स्वर्ण, रजत आदि का प्रयोग प्रचूर मात्रा में होता था ।
चूंकि ज्ञाताधर्मकथांग में ग्रामों की भांति ही ग्रामीण आवासों के विषय में सूचना का भी अभाव है, अतएव यहाँ पर नगरीय आवासों पर ही प्रकाश डाला गया है।
पर्वत
ज्ञाताधर्मकथांग में नगरों के वर्णन के संदर्भ में विभिन्न पर्वतों का वर्णन मिलता है
रेवतक
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार द्वारिका के उत्तर-1 - पूर्व में रैवतक पर्वत था 1268 अन्तकृतदशांग में भी यही वर्णन है । 269 त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र के अनुसार द्वारिका के समीप पूर्व में रैवतक गिरि, दक्षिण में माल्यवान शैल, पश्चिम में सौमनस पर्वत और उत्तर में गंधमादन गिरि हैं। 270 महाभारत के अनुसार रैवतक कुशस्थली के समीप था । 271 वैदिक हरिवंशपुराण में रैवतक पर्वत की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि यादव मथुरा छोड़कर सिन्धु में गए और समुद्र किनारे
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