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ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण विजय में पुष्कलावती नामक देव निवास करता है। इस कारण वह पुष्कलावती विजय कहा जाता है। सलिलावती विजय
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार जम्बूद्वीप में महाविदेह क्षेत्र में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नाम वक्षार पर्वत से पश्चिम में और पश्चिम लवण समुद्र से पूर्व में सलिलावती नामक विजय है। सलिलावती विजय की राजधानी वीतशोका नौ योजन चौड़ी, यावत् (बारह योजन लम्बी) साक्षात् देवलोक के समान थी।4 पुण्डरीकिणी ___यह नगरी पुष्कलावती विजय की राजधानी है। पुष्कलावती विजय जम्बूद्वीप में, पूर्वविदेह क्षेत्र में, सीता नामक महानदी के उत्तरी किनारे, नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, उत्तरी शीतामुख वनखण्ड के पश्चिम में और एक शैल वक्षार पर्वत से पूर्व दिशा में विद्यमान है। उस पुष्कलावती विजय की यह पुण्डरीकिणी नगरी बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी साक्षात् देवलोक के समान है। यह रमणीय नगरी सुवर्णमय प्राकार से युक्त, दिव्य वज्र, इन्द्रनील, मरकत, कर्केतन एवं पदमाग मणिमय गृहसमूह से युक्त, कालागरू की गंध से व्याप्त और जिनभक्तों से विभूषित है। वीतशोका
यह सलिलावती विजय की राजधानी है।” ज्ञाताधर्मकथांग में दिए गए सलिलावती विजय के वर्णन के अनुसार वीतशोका जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक क्षेत्र में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावहनामक वक्षार पर्वत से पश्चिम में और पश्चिम लवण समुद्र से पूर्व में स्थित है। वीतशोका नगरी दक्षिण-उत्तर में बारह योजन लम्बी और पूर्व-पश्चिम में नौ योजन चौड़ी सुवर्णमय प्राकार से वेष्टित है। यह नगरी एक हजार गोपुर द्वारों, पाँच सौ अलप द्वारों तथा रत्नों से विचित्र कपाटों वाले सात सौ क्षुद्र द्वारों से युक्त है। इस नगरी में एक हजार चतुष्पथ और बारह हजार रथ मार्ग हैं, ये अविनश्वर नगरी अन्य किसी के द्वारा निर्मित नहीं है, अपितु प्राकृतिक है। यह नगरी देवलोक के समान थी।
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