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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन पर 10-10 कांचनगिरि पर्वत हैं। महाविदेह की उत्तर-दक्षिण चौड़ाई के क्षेत्र के बीच 10000 योजन विस्तृत मेरु पर्वत का समतल भू-भाग व उससे पूर्व-पश्चिम में 2200 योजन तथा उत्तर-दक्षिण में क्रमश: 250 योजन विस्तृत भद्रशाल वन है जो बड़ा रमणीक एवं मनोहारी है। इन सभी का विस्तृत वर्णन श्रीमद् जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के 4 वक्षस्कार में मिलता है। इस क्षेत्र को महाविदेह इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भरत, ऐरावत, हेमवत, हैरण्यवत, हरिवास, रम्यकवास क्षेत्र की अपेक्षा लम्बाई, चौड़ाई, आकार एवं परिधि में विस्तीर्णतर, अति विस्तर्ण, विपुलतर, अति विपुल, महत्तर, अतिविशाल, अति वृहत् प्रमाणयुक्त है। महाविदेह में अति महान्-विशाल देहयुक्त मनुष्य निवास करते हैं। पूर्वविदेह ज्ञाताधर्मकथांग में पूर्वविदेह का नामोल्लेख हुआ है। यह सुमेरु पर्वत के पूर्व में स्थित होने से महाविदेह क्षेत्र का पूर्वी हिस्सा पूर्व महाविदेह या पूर्वविदेह कहलाता है। यह 33684% योजन विस्तृत है। मंदर पर्वत के पूर्व भाग में पूर्वविदेह नामक सोलह क्षेत्र एवं पश्चिम भाग में पश्चिमविदेह नामक सोलह क्षेत्र स्थित है। इन दोनों के मध्य भाग में विदेह क्षेत्र है। इस विदेह क्षेत्र के बीचोंबीच/मध्य में सुमेरु स्थित है। सुमेरु पर्वत के सुदर्शन, मेरु, मन्दर पर्वत आदि अनेक नाम हैं। इस सुमेरु पर्वत के कारण से विदेह क्षेत्र के दो भेद हो गए हैंपूर्वविदेह और पश्चिमविदेह । पुनः शीता नदी और शीतोदा नदी के निमित्त से पूर्व विदेह के भी दक्षिण उत्तर के भेद से दो भेद हो गए हैं और पश्चिम विदेह के शीतोदा नदी के कारण तीन भेद हैं।" विजय ज्ञाताधर्मकथांग में बहुत से चक्रवर्ती विजयों का नामोल्लेख या विस्तृत विवेचन मिलता है, जिनका दिग्दर्शन इस प्रकार हैपुष्कलावती ज्ञाताधर्मकथांग में पुष्कलावती विजय का उल्लेख मिलता है। जम्बूद्वीप में पूर्वविदेह क्षेत्र में, शीता नामक महानदी के उत्तरी किनारे, नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में उत्तर के शीतामुख वनखण्ड के पश्चिम में और एक शैल वक्षार पर्वत के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुष्कलावती नामक विजय है। इस 74
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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