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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
राजा का पद वंशपरम्परा से प्राप्त होता था । राजा दीक्षित होने से पूर्व या अपने जीवनकाल के अंत से पूर्व अपने पुत्र को राजगद्दी पर आसीन कर देता था । १° ज्ञाताधर्मकथांग की इन कथाओं में राजभवनों एवं राजा के अंतः पुरों के भीतरी जीवन की झांकी भी देखने को मिलती है ।" राज्यव्यवस्था में राजा, युवराज, मंत्री, सेनापति, गुप्तचर, पुरोहित, श्रेष्ठी, दूत, संधिपाल आदि व्यक्ति प्रमुख होते थे। 2 राज्य- रक्षा के लिए चतुरंगिणी सेना व विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का उल्लेख मिलता है ।
धार्मिक मत-मतान्तर
ज्ञाताधर्मकथांग की इन कथाओं में जैनधर्म एवं दर्शन के विविध पहलू तो उद्घाटित हुए ही हैं, साथ ही अन्य धर्मों एवं मतों के सम्बन्ध में इनसे विविध जानकारी भी प्राप्त होती है, यथा- शैलक की कथा में शुक परिव्राजक का उल्लेख हुआ है, जो सांख्य मतावलम्बी था । " धन्य सार्थवाह की कथा में विभिन्न धर्मों को मानने वाले परिव्राजकों का उल्लेख है, जैसे- चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिक्षांड, पांडुरंक, गौतम, गौव्रती, गृहिधर्मा, अविरुद्ध, विरुद्ध, ब्राह्मण, श्रावक, परिव्राजक, निग्रन्थ आदि ।” आठवें अध्ययन 'मल्ली' में चोक्खा परिव्राजिका एवं मल्ली का संवाद भी अन्य धर्म एवं जैनधर्म की तुलना करता हुआ प्रतीत होता है।% इन सबकी मान्यताओं को यदि व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाए तो कई नई धार्मिक और दार्शनिक विचारधाराओं का पता चल सकता है । संकट के समय में तथा संतान प्राप्ति के लिए लोग कई देवताओं का स्मरण करते थे । उनके नाम इन कथाओं में मिलते हैं।” इन कथाओं में साधुचर्या व श्रावकचर्या” का स्पष्ट व विस्तृत विवेचन मिलता है। जैनदर्शन के कई गूढ़ पहलुओं का कथाओं के माध्यम से अत्यन्त सरल और ग्राह्य निदर्शन देखने को मिलता है। 100 विभिन्न प्रकार के देवविमानों व देवलोकों का सजीव वर्णन मिलता है ।
अर्थव्यवस्था
ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न कथा पात्रों के माध्यम से उस समय के लोगों की आर्थिक स्थिति का सजीव चित्रण देखने को मिलता है । उस समय देशी व्यापार के अतिरिक्त विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था । 102 समुद्रयात्रा एवं सार्थवाह जीवन के सम्बन्ध में ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है। 103 ज्ञाताधर्मकथांग आजीविका के विभिन्न माध्यमों के रूप में व्यापार वाणिज्य, कृषि 104 व अन्य
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