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संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग हस्तकलाओं का उल्लेख मिलता है। उस समय सोने के सिक्कों का प्रचलन था।06 माप तौल की विभिन्न इकाईयों का उल्लेख मिलता है।107 यात्रा के लिए यान-वाहन के रूप में विभिन्न साधन बैलगाड़ी108, रथ109, शिविका10, नौका11 आदि का वर्णन आता है।12 व्यापार जल113 और थल14 से होता था। भौगोलिक स्थिति
ज्ञाताधर्मकथांग की इन कथाओं का विस्तार केवल भारत में ही नहीं अपितु बाहर के देशों तक भी रहा है, यथा-द्रौपदी का अपहरण कर जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के हस्तिनापुर नगर से धातकीखण्ड नामक द्वीप के भरत क्षेत्र के अमरकंका नामक राजधानी तक पहुँचाने या ले जाने तक का वर्णन मिलता है।115 इन कथाओं के कथाकार स्वयं सारे देश को स्वपदों से नापते रहे हैं अतः उन्होंने विभिन्न जनपदों, नगरों, ग्रामों, वनों एवं अटवियों की साक्षात् जानकारी प्राप्त की है और उसे ही अपनी कथा-कहानियों में वर्णित किया है। कुछ पौराणिक भूगोल का भी उल्लेख है, किन्तु अधिकांश विवेचन देश की प्राचीन राजधानियों, प्रदेशों, जनपदों, नगरों एवं उद्यानों आदि सम्बन्धित ही है। अंगदेश, काशी, इक्ष्वाकु, कुणाल, कुरु, पांचाल, कौशल आदि जनपदों, अयोध्या, चम्पा, मिथिला, वाराणसी, द्वारिका, हस्तिनापुर, श्रावस्ती, राजगृह, साकेत आदि नगरों एवं वहाँ के नागरिक जीवन का उल्लेख भी मिलता है। ज्ञाताधर्मकथांग की इन कथाओं में नगर संरचना, भवन-निर्माण, ग्रह, ऋतु, समय, माह, दिशाएँ, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, पर्वतनदियाँ व मंदिरों आदि का उल्लेख मिलता है। शिक्षा एवं कला
___ इन कथाओं में कुछ कथा-नायकों की गुरुकुल शिक्षा का वर्णन मिलता है। मेघकुमार16 और थावच्चापुत्र17 दोनों को आठ वर्ष से कुछ अधिक वय होने पर गुरुकुल में शिक्षा प्राप्ति हेतु भेजे जाने का उल्लेख मिलता है।
इन कथाओं से स्पष्ट है कि उस समय गुरु-शिष्य संबंध अत्यन्त प्रगाढ़ और मधुर थे। गुरु का समाज में सम्मानजनक स्थान था। गुरु भी शिष्य को पुत्रवत् समझता था। शिक्षा केवल सैद्धान्तिक कम ही नहीं व्यावहारिक ज्यादा भी थी।
मेघकुमार की कथा में 72 कलाओं का नामोल्लेख मिलता है ।18 इन 72 कलाओं में भी संगीत, लेख, वाद्य, नृत्य, चित्रकला आदि प्रमुख कलाएँ हैं।
मल्ली की कथा में चित्रकला और मूर्तिकला का बड़ा जीवन्त वर्णन मिलता
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