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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन रूप में प्रदर्शित की गई है। उसकी प्रतिभा से प्रेरित हो नारी सामाजिक नेतृत्व की नई बुलंदिया छू सकती है। ___ 'अर्थ' जीवन रक्त के समान है, इसके बिना सांस्कृतिक अभ्युत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्रस्तुत कृति के 'ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन' नामक पंचम अध्याय में तत्कालीन अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा का विश्लेषण किया गया है।
कृषि अर्थव्यवस्था की धुरी थी। कृषि पूर्णत: वैज्ञानिक ढंग से की जाती थी, लेकिन किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता था, जो स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता का प्रमाण है। सिंचाई के साधन के रूप में पुष्करिणी, तालाब, सरोवर, बावड़ी आदि थे। चावल, सरसों, उड़द आदि मुख्य फसलें थी। कृषि, दूध, यातायात, चमड़ा और मांस के लिए पशु पाले जाते थे। अप्रत्यक्ष रूप में वस्त्र, धातु, बर्तन काष्ठ, चर्म, मद्य व प्रसाधन आदि उद्योगों का उल्लेख मिलता है। लोग शिल्पादि विभिन्न कलाओं के द्वारा भी अर्थोपार्जन करते थे। तत्कालीन समृद्धि के शिखर पुरुष-श्रेणिक, मेघ, जितशत्रुराजा, धन्यसार्थवाह, नन्दमणिकार आदि आधुनिक आर्थिक जगत् के आदर्श बन सकते
आधुनिक वित्त-व्यवसाय की भांति उस समय भी पूंजी के लेन-देन का व्यवसाय प्रचलन में था। देशी-व्यापार स्थलमार्ग से और विदेशी-व्यापार जलमार्ग से होता था। परिवहन के विभिन्न साधन- रथ, बैलगाड़ी, हाथी, घोड़ा, नौका, पोत, जलयान आदि थे। माप-तौल की प्रणालियों के रूप में गणिम, धरिम, मेय
और परिच्छेद्य प्रचलन में थी। सिक्कों का चलन सीमित था। अधिकांश लेन-देन वस्तु विनिमय के माध्यम से होते थे।
राजनीतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को ज्ञाताधर्मकथांग में राजनैतिक स्थिति' नामक षष्ठम अध्याय में उकेरा गया है। राज्य के सप्तांग के रूप में राज्य, राष्ट्रकोष, कोठार, बल (सेना), वाहन, पुर (नगर) और अन्तःपुर का नामोल्लेख मिलता है। राजा राज्य का सर्वेसर्वा होता था। राजा राज्योचित-गुण सम्पन्न थे। उनमें क्षत्रियोचित्त सभी गुण विद्यमान थे। राजा वंश परम्परा से ही बनते थे। राज्याभिषेक समारोह अत्यन्त भव्यता से मनाया जाता था। सामान्यतः ज्येष्ठ पुत्र को राजा बनाया जाता और कनिष्ठ पुत्र को युवराज बना दिया जाता था। यद्यपि राजव्यवस्था विकेन्द्रिय नहीं थी, लेकिन राज्य का संचालन करने के लिए राजा
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