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________________ उपसंहार तत्कालीन समाज की पारिवारिक स्थिति, रीति-रिवाज, संस्कार, खान-पान, रहन-सहन, वस्त्राभूषण और उत्सव-महोत्सवों से परिचित होना इष्ट है। 'ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन' नामक चतुर्थ अध्याय में सामाजिक स्थिति से जुड़े विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया है। इस अध्याय में बतलाया गया है कि तत्कालीन परिवार में पति-पत्नी के अलावा माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री आदि रहते थे। सामान्यतः पारिवारिक सम्बन्ध मधुर थे। परिवार का मुखिया वयोवृद्ध सदस्य या पिता होता था और सब परिजन उसकी आज्ञा का पालन करते थे। उसकी पत्नी गृहस्वामिनी होती थी, जो परिवार के सभी क्रियाकलापों को नियंत्रित व संचालित करती थी। सभ्य-शिष्ट व्यवहार एवं मधुर-संवाद उस युग के सामाजिक जीवन की विशेषता थी। सामाजिक शिष्टाचार में अतिथि-सत्कार को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त विविध संस्कारों का विधान भारतीय संस्कृति में रहा है। जन्म, नामकरण, राज्याभिषेक, विवाह व दीक्षा आदि संस्कारों का वर्णन इस अध्याय में किया गया है। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित नारी जहाँ एक ओर अपने शीलाचार और सतीत्व के कारण पुरुष तो क्या देवताओं तक की आराध्या है लेकिन दूसरी तरफ वह व्यभिचारिणी स्त्री के रूप में प्रकट हुई है। वह साध्वी के रूप में मानव को आत्मकल्याण का पथ दिखलाती है तो गणिका के रूप में जनमानस के बीच कला की उपासिका बनकर उभरती है। विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ, वस्त्र, आभूषण, प्रसाधन, मनोरंजन के साधन, उत्सव-महोत्सव एवं लोक विश्वासों का चित्रण भी इस अध्याय में किया गया है। समाज अप्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार वर्षों में विभक्त था। बहुपत्नीवाद, वेश्यावृत्ति, दहेजप्रथा, दासप्रथा, हत्या, अपहरण, लूटपाथ आदि बुराइयाँ समाज के भाल पर कलंक थी, वहीं दूसरी ओर समाज में प्रचलित आश्रम-व्यवस्था व्यक्ति को चरम लक्ष्य-मोक्ष की ओर बढ़ने के लिए अभिप्रेरित करती थी। आज आधुनिकता की आड़ में हमारा पारिवारिक ढांचा चरमराने लगा है। सामाजिक सम्बन्धों के हार्द को ज्ञाताधर्मकथांग से ग्रहणकर स्वस्थ समाज की पुनर्स्थापना की जा सकती है। आधुनिक नारी के लिए थावच्चागाथापत्नी आदर्श 331
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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