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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन करना, वस्त्र के तीन भाग करके उसे दोनों ओर से अच्छी तरह देखना, देखने के बाद यतना से धीरे-धीरे झड़कना, झड़कने के बाद वस्त्रादि पर लगे हुए जीव को यतना से प्रमार्जित कर हाथ से लेना और एकान्त में परिष्ठापन करना । ब्रह्मचर्य की नववाड़ 250 जिस प्रकार किसान अपने बोए हुए खेत की रक्षा के ओर बाड़ लगता है, वैसे ही आचार्य या ब्रह्मचारी पुरुष धर्म के की रक्षा करने के लिए नौ प्रकार की बाड़ (गुप्ति) लगाते हैं यानी नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियों से अपने ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखते हैं । ये नौ ब्रह्मचर्य - गुप्तियाँ इस प्रकार हैं लिए उसके चारों बीज रूप ब्रह्मचर्य 1. विविक्त शय्यासन - स्त्री, पशु, नपुसंक रहित विविक्त स्थान, 2. मनोरम स्त्री कथा वर्जन, 3. स्त्रियों का अतिसंसर्ग वर्जन, 4. स्त्रियों के अंगोपांग निरीक्षण वर्जन, 5. स्त्रियों के कामवर्धक शब्द - गीत स्मरण वर्जन, 6. पूर्वभुक्त कामभोगों के स्मरण का निषेध, 7. कामोत्तेजक भोजन - पान वर्जन, 8. अत्यधिक भोजनपान वर्जन, 9. स्नान- शृंगार वर्जन । साधु इन नववाड़ों के संरक्षण में दृढ़ता से निष्ठापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। अब्रह्मचर्य को अधर्म का मूल, महादोषों का स्रोत समझकर मन से भी पास में नहीं आने देते । तीन शल्य जो काँटे की तरह अन्दर ही अन्दर चुभता है उसे शल्य कहते हैं । मनोविज्ञान की भाषा में मनुष्य की आन्तरिक कुण्ठा और ग्रन्थियों को शल्य कह सकते हैं। शल्य तीन प्रकार का होता है- मायाशल्य, मिथ्याशल्य, निदानशल्य । 1. माया शल्य आत्मवंचना पूर्वक तपश्चरण या व्रताचरण करना माया शल्य है। ज्ञाताधर्मकथांग में महाबल मुनि ने तपश्चरण में माया का सेवन किया जिससे उनको स्त्री पर्याय का बंध हुआ । 251 2. मिथ्या शल्य सम्यग्दर्शन से विरहित धार्मिक प्रवृत्ति मिथ्याशल्य है । ज्ञाताधर्मकथांग में नन्दमणियार अपने सम्यक्त्व से भ्रष्ट होकर मिथ्यात्व को प्राप्त हो गया और उसी के अनुरूप आचरण करने लगा 1 252 305
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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