SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन उत्कटुकासन से ध्यान करना आदि प्रक्रियाएँ हैं। दसवीं प्रतिमा यह प्रतिमा भी सात अहोरात्र की होती है। इसमें चौविहार तेले-तेले पारणा करना, ग्राम के बाहर गोदुहासन, वीरासन या आम्रकुब्जासन से ध्यान करना आदि प्रक्रियाएँ हैं। ग्यारहवीं प्रतिमा यह प्रतिमा एक अहोरात्रि यानी आठ प्रहर की होती है । चौविहार बेले के द्वारा इसकी आराधना होती है। इसमें नगर के बाहर दोनों हाथों को घुटनों की ओर लम्बे करके दण्डायमान रूप में खड़े होकर कायोत्सर्ग किया जाता है। बारहवीं प्रतिमा यह प्रतिमा एक रात्रि की होती है। इसकी आराधना केवल एक रात की है। इसमें चौविहार तेला करके गाँव के बाहर निर्जन स्थान में खड़े होकर मस्तक को थोड़ा-सा झुकाकर किसी एक पुद्गल पर दृष्टि रखकर निर्निमेय दृष्टि से निश्चलतापूर्वक कार्योत्सर्ग किया जाता है। उपसर्गों के आने पर समभाव से सहन किया जाता है। प्रतिलेखन/प्रमार्जना वस्त्र-पात्र आदि को अच्छी तरह से खोलकर चारों ओर से देखना, प्रतिलेखना कहलाती है और रजोहरण आदि के द्वारा अच्छी तरह साफ करना प्रमार्जना है। प्रतिलेखना और प्रमार्जना दोनों परस्पर सम्बन्धित हैं। पहले प्रतिलेखना होती है और बाद में प्रमार्जना। ओघनियुक्ति के अनुसार शरीर, उपाश्रय, उपकरण, स्थंडिल-मल-मूत्र विजर्सन की भूमि, अवस्तंभ (सहारा) और मार्ग ये प्रतिलेखनीय हैं।245 ज्ञाताधर्मकथांग में अभयकुमार246 द्वारा अष्टमभक्त तप ग्रहण करने से पूर्व प्रमार्जन-प्रतिलेखन करने का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार मुनि मेघ247 तथा थावच्चापुत्र अनगार248 ने संलेखना धारण करने से पूर्व पृथ्वी शिलापट्टक आदि का प्रतिलेखन किया। प्रतिलेखन की विधि का वर्णन करते हुए उत्तराध्ययन सूत्र249 में लिखा है- उकडू आसन से बैठकर वस्त्र को भूमि से ऊँचा रखकर प्रतिलेखन करना, वस्त्र को दृढ़ता से स्थिर रखना, उपयोगयुक्त होकर जल्दी न करते हुए प्रतिलेखन 304
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy