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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
पान भोजन- ये अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनाएँ हैं ।
मुख से अच्छे बुरे किसी प्रकार के शब्द न बोलकर मौन रहना वचन गुति है । मन को अशुभ भावों से बचाकर आत्महिकारी शुभ विचारों में लगाना मनोति है । किसी जीव को क्लेश न हो इस प्रकार सावधानीपूर्वक चार हाथ आगे की भूमि देखकर चलना ईर्यासमिति है । अपने उपकरणों को उठाते - रखते समय अवलोकन व प्रमार्जन करके रखना और उठाना आदान-निक्षेपण समिति है । प्राकृतिक प्रकाश में भली-भांति देख - शोधकर खाना-पीना आलोकित - पान भोजन है।
(2) सत्य महाव्रत
असत्य वचन तथा दूसरों को संताप देने वाले सत्य वचन का त्याग करना सत्य महाव्रत है।
सत्य महाव्रत की पाँच भावनाएँ- क्रोध त्याग, लोभ त्याग, भय त्याग, हास्य त्याग और अनुवीचि (निर्दोष वचन ) भाषण हैं । क्रोध, लोभ, भय और हंसी मजाक में असत्य वचन की संभावना रहती है, अतः सत्य महाव्रत की रक्षा के लिए क्रोध, लोभ, भय और हास्य का त्यागकर निर्दोष वचन बोलना चाहिए।
ज्ञाताधर्मकथांग में सत्य महाव्रत का पालन अधिकतर मुनियों के द्वारा किया जाता है, लेकिन एक प्रसंग ऐसा भी आता है जिसमें शैलक राजर्षि क्रोध के वशीभूत होकर अपने शिष्य पंथकमुनि को भला-बुरा कहते हैं । " यह आचरण के प्रतिकूल ही कहा जाएगा।
( 3 ) अचौर्य महाव्रत
बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करना चोरी है, इसके परिपूर्ण त्याग को अचौर्य महाव्रत कहते हैं ।
अस्तेयव्रत की दृढ़ता एवं सुरक्षा के लिए पाँच भावनाएँ हैं- सोचविचारकर वस्तु की याचना करना, आचार्य आदि की अनुमति से भोजन करना, परिमित पदार्थ स्वीकार करना, पुनः पुनः पदार्थों की मर्यादा करना, साधर्मिक (साथी श्रमण) से परिमित वस्तुओं की याचना करना 1200
(4) ब्रह्मचर्य महाव्रत
मैथुन कर्म को कुशील कहते हैं। इसका मन, वचन, काय से त्याग करना ब्रह्मचर्य महाव्रत है । साधु बाल, युवा एवं वृद्ध सभी प्रकार की नारियों से दूर रहते
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