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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन इस प्रकार के महोत्सवों में जन-जन के हृदय की अपार श्रद्धा अभिव्यक्त होती है और लोगों को संयमपथ पर बढ़ने की प्रेरणा भी मिलती है। वस्त्राभूषण-त्याग व केश लोच ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि दीक्षित होने वाला साधक अपने वस्त्राभूषणों को त्यागकर अपने सिर पर दाढ़ी के बालों को मुट्ठियों से स्वयं ही उखाड़ता है180, जिसे केश लोच या पंचमुष्टि लोच (पाँच मुट्ठियों से उखाड़ने के कारण) कहा जाता है। मेघकुमार का मुण्डन पहले नापित करता है181 फिर मेघकुमार स्वयं पंचमुष्टि लोच करता है।82 इससे प्रश्न उठता है कि दो बार केश लोच की आवश्यकता क्यों हुई? शुक परिव्राजक द्वारा शिखा लोच183 करने के प्रसंग के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि परिव्राजक एक शिखा को छोड़कर अन्य सारे नापित से कटवाते थे और प्रतीक-लुंचन के रूप में शिखा का लोच करते थे। उपर्युक्त प्रक्रिया से गुजरने के पश्चात् साधक श्रमण जीवन में प्रवेश करता है और उसका आचरण श्रमणाचार कहा जाता है जिसका ज्ञाताधर्मकथांग के आलोक में निदर्शन इस प्रकार हैबाह्य उपकरण या उपधि ज्ञाताधर्मकथांग में साधु के बाह्य वेष व उपकरण आदि के विषय में जो संकेत मिलते हैं उनसे पता चलता है कि साधु दीक्षा लेते समय अपने घर से या गृहस्थ से पात्र एवं रजोहरण आदि उपकरण लाते थे। मेघकुमार की दीक्षा से पूर्व राजा श्रेणिक अपने कौटुम्बिक जनों को कुत्रिकापाण (वर्तमान समय के डिपार्टमेंटल स्टोर के समान) से दो लाख स्वर्ण मोहरें देकर पात्र एवं रजोहरण मंगवाता है। 184 इस स्थल पर वस्त्र या साधुओं के उपयोग में आने वाली अन्य वस्तु का कोई संकेत नहीं मिलता लेकिन स्थविरकल्पी मुनियों की विधि के अनुसार मेघकुमार ने वस्त्रों का उपयोग किया। एक अन्य प्रसंग में श्रमणोपासिका पोट्टिला द्वारा वस्त्र, पात्र, कम्बल आदि चौदह प्रकार की वस्तुएँ साधु-साध्वियों को दान देने का उल्लेख भी मिलता है।185 वसति या उपाश्रय ज्ञाताधर्मकथांग में साधु के ठहरने के स्थान को वसति या उपाश्रय कहा 291
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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