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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन दीक्षार्थी की परीक्षा
दीक्षार्थी के अभिभावक उसके वैराग्य को कसौटी पर कसते और इस बात का पता लगाते कि कहीं उसका वैरागय हल्दी के रंग की तरह तो नहीं है जो कष्टों की जरा-सी धूप लगते ही उड़ जाय। इसके लिए दीक्षार्थी को पहले श्रणमधर्म की कठोरता बतलाई जाती। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार73 को उसके माता-पिता तथा थावच्चापुत्र को कृष्ण-वासुदेव74 संयमी जीवन की कठिनाइयाँ बतलाकर उसके वैराग्य की उत्कृष्टता जाँचते हैं।
___ श्रमण जीवन की कठोरता बताने के पश्चात् मुमुक्षु को भौतिक प्रलोभन दिए जाते हैं । मेघकुमार75 व थावच्चापुत्र को अपनी नवविवाहित पत्नियों के साथ विपुल काम-भोग भोगने का प्रलोभन दिया गया।
मेघकुमार की माता धारिणी आँखों से आँसू बहाकर उसके वैराग्य के रंग को धुलाने का प्रयास करती है।
कई बार माता-पिता या भाई दीक्षा की भावना रखने वाले को राजसिंहासन पर बिठाकर कहते हैं- 'तू राजा है, हम तेरी प्रजा हैं। 178 शायद ऐसा करके वे देखना चाहते हैं कि सत्ता मोह से इसका वैराग्य डिगता है या नहीं?
इस प्रकार जब अभिभावकगण को यह विश्वास हो जाता है कि उसका वैराग्य उत्कृष्ट है तो वे उसे दीक्षा की अनुमति प्रदान कर देते हैं।
आलोच्य ग्रंथ के सांगोपांग अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि अभिभावक दीक्षार्थी का परीक्षण अवश्य करते थे, किन्तु कोई भी अभिभावक यह नहीं कहता कि दीक्षा लेना अनुचित है। इससे स्पष्ट है कि वे संयम की महत्ता से परिचित थे। अभिनिष्कक्रमण महोत्सव व धर्म दलाली
जब साधक दीक्षा ग्रहण करना चाहता था तो वह गुपचुप दीक्षा नहीं लेता था अपितु व्यवस्थित रूप से अभिनिष्क्रमण महोत्सव मनाया जाता था। जब थावच्चापुत्र भगवान अरिष्टनेमि के पावन उपदेश को श्रवण कर दीक्षा लेना चाहता है तो उसकी माता वासुदेव कृष्ण के दरबार में उपस्थित होकर अभिनिष्क्रमण महोत्सव के लिए छत्र-चामर आदि की याचना करती है। श्रीकृष्ण थावच्चापुत्र के दृढ़ वैराग्य को जानकर आह्लादित होते हैं और स्वयं की देखरेख में दीक्षा महोत्सव का आयोजन करते हैं।79
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