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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन अजितशत्रु, नन्दमणिकार'5", कुंभ राजा, राजा कनकध्वज व राजा पुण्डरीक'62 आदि भी श्रमणोपासक थे। स्त्रियाँ भी श्रमणोपासिका थीं। रानी प्रभावती'63, पोट्टिला'64 तथा सुकुमालिका'65 आदि श्रमणोपासिका श्राविकाएँ थीं। नन्दमणिकार के जीव मेंढ़क166 द्वारा बारह व्रत धारण करने के प्रसंग के आधार पर कहा जा सकता है कि सन्नी तिर्यंच भी श्रमणोपासक हो सकता है। अभिगम श्रावक को धर्म स्थान में जाने से पूर्व जिन बातों का विवेक रखना चाहिए कि वे अभिगम है। ज्ञाताधर्मकथांग में पाँच प्रकार के अभिगमों का उल्लेख मिलता है। मेघकुमार67 व कृष्ण वासुदेव168 ने क्रमश: भगवान महावीर और अर्हत् अरिष्टनेमि के दर्शनार्थ जाते समय पाँच अभिगमों का पालन किया। ये पाँच अभिगम इस प्रकार हैं(1) सचित्त का त्याग जीवयुक्त अप्रासुक वस्तुएँ जो सचित्त हैं, उन्हें धर्म स्थान में नहीं ले जाना, जैसे- पुष्प, पान आदि। (2) सचित्त विवेक अहंकार सूचक वस्तुएँ- वस्त्र, अलंकार, छड़ी, बेल्ट, घड़ी, जूते, पगड़ी, छत्र आदि धर्म स्थान में नहीं ले जाना। (3) उत्तरासंगधारण एक दुपट्टा मुँह पर लगाना जिससे गुरुजनों आदि से बात करते समय अपना थूक आदि दूसरों पर न पड़ें और वायुकाय के जीवों की रक्षा भी हो जाए। (4) दृष्टिवंदन गुरु आदि श्रमणों पर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़ना। (5) मन को एकाग्र करना एवं विधिवत् वंदन मन को एकाग्र करके विधिपूर्वक तीन बार प्रदक्षिणा- दक्षिण की ओर से आरम्भ करके वंदना नमस्कार करते हैं। इन पाँच अभिगम और बारह व्रतों के अलावा श्रावक रात्रि भोजन एवं समस्त कुव्यसन- जुआ, माँस, शराब, चोरी, शिकार, परस्त्री/पुरुष, वेश्यागमन आदि का भी त्याग करता है। यद्यपि ज्ञाताधर्मकथांग में इन कुव्यसनों को श्रावक 288
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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