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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन सचित्तपिधान : सचित्त वस्तु से ढककर रखना। कालातिक्रम : समय पर दान न देना, असमय में दान के लिए कहना। परव्यपदेश : दान न देने की भावना से अपनी वस्तु को पराई बता देना या पराई वस्तु को अपनी वस्तु बताकर देना। मात्सर्य : ईर्ष्या व अहंकार की भावना से दान करना। प्रत्येक श्रावक का यह कर्तव्य है कि वह पूरी जागरूकता के साथ उपर्युक्त अतिचारों से अपने आचरण को सुरक्षित रखकर अतिथिसंविभाग का पूर्णतः पालन करे। यह व्रत श्रावक के व्यवहार को मानवीयता, सदाशयता, त्याग और विनय के सद्गुणों से सज्जित कर देता है। श्रावक के द्वार से कोई निराश नहीं लौटना चाहिए। उसे सहायता के पात्र व्यक्ति की यथाशक्ति सहायता करनी चाहिए। जैन परम्परा में दान दो प्रकार के बताए गए हैं- अनुकंपादान और सुपात्रदान। भूखे-प्यासे दीनःदुखी को देखकर करुणा की अपेक्षित सहायता करता है, यह अनुकम्पादान कहलाता है। ज्ञाताधर्मकथांग में इस अनुकम्पादान से प्रेरित होकर राजा कुम्भा44, नन्दमणिकार45, तैतलिपुत्र146 व सागरदत्त'47 द्वारा भोजनशालाएँ और दानशालाएँ बनाने का उल्लेख मिलता है। साधु-साध्वियों को दिया जाने वाला दान सुपात्रदान कहलाता है। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि पोट्टिला148 व सुकुमालिका ने आर्याओं को आहार दान दिया। श्रमण को उचित आहार नहीं देने या अखाद्य आहार देने पर श्रावक का भव भ्रमण बढ़ जाता है।150 पोट्टिला श्रमणोपासिका साधु-साध्वियों को चौदह प्रकार का दान देती थी'51- (1) अशन (2) पान (3) खादिम (4) स्वादिम (5) वस्त्र (6) पात्र (7) कम्बल (8) पाद प्रोंछन (9) औषध (10) भेषज (11) पीढ़ा (12) पाटा (13) शय्या-उपाश्रय (14) संस्तारक। ज्ञाताधर्मकथांग में उपर्युक्त बारह व्रतधारी अनेक श्रमणोपासकों का उल्लेख मिलता है जो निष्ठापूर्वक इन व्रतों का पालन करते थे। श्रमणोपासक श्रावक जीव-अजीव तत्त्वों के ज्ञाता होते हैं । अर्हनक श्रावक श्रावकत्व की कसौटी पर खरा उतरता है और अपने धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा एवं श्रावकत्व में मजबूत रहने के कारण देवता को भी झुका लेता है।152 सुबुद्धिनामक अमात्य ने भी अपने श्रावकत्व से राजा का मन जीत लिया और उसे भी श्रमणोपासक बना दिया।154 इसके अलावा अर्हन्त्रक', सुदर्शन सेठ, राजा कुम्भा, राजा 287
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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