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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन शय्यासंस्तारक
संस्तारक (बिछाने की वस्तु) का भली प्रकार से निरीक्षण न
करना। अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित शय्यासंस्तारक - पौषध हेतु उपयुक्त शय्या
संस्तारक आदि का भली प्रकार साफ किए बिना या देखे बिना
उपयोग करना। अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चार- - मल-मूत्र त्यागने के स्थान का प्रस्रवण भूमि
निरीक्षण न करना। अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित उच्चार- - मल-मूत्र आदि त्यागने की भूमि प्रस्रवण भूमि
को स्वच्छ किए बिना अथवा अच्छी तरह साफ किए बिना
उपयोग करना। पौषधोपवास-सम्यगननुपालनता - पौषधोपवास का सम्यक् रीति
से पालन न करना। ज्ञाताधर्मकथांग में अभयकुमार40 व नन्दमणिकार ने अष्टमभक्त उपवास पौषधयुक्त एवं अतिचार रहित किया।42
पौषध में देवता को नमस्कार या वार्ता नहीं करते। इसीलिए अभयकुमार ने पौषध पालकर (पूर्णकर) फिर अपने मित्र-देव से बातचीत की।43
(4) अतिथि संविभागवत
यह व्रत नि:स्वार्थ त्याग और सत्कारसेवा का प्रतीक है। श्रावक गृहस्थ ही होता है, जिसके यहाँ अतिथियों का आगमन स्वाभाविक ही है। श्रमणों का आगमन सहसा, आकस्मिक होता है या ये बिना पूर्व निश्चित तिथि के ही पहुँच जाते हैं- इसी कारण ये 'अतिथि' होते हैं। गृहस्थ अपने घर में अपने उपयोगार्थ या निमित्त जो भोजन बनाता है, उस भोजन का अतिथि (श्रमण) के आगमन पर संविभाग करता है अर्थात् कुछ हिस्सा श्रमण को दान करता है, इसे ही अतिथि संविभागवत कहते हैं। इस व्रत के पाँच अतिचार हैंसचित्त निक्षेप : अचित्त वस्तु (आहार) को सचित्त वस्तु पर रखना।
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