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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन ऋजुमति की अपेक्षा विपुलमति का ज्ञान विशुद्धतर होता है क्योंकि विपलुमति ऋजुमति की अपेक्षा मन के सूक्ष्मतर परिणामों को भी जान सकता है। दूसरा अन्तर यह है कि ऋजुमति प्रतिपाती है किन्तु विपुलमति नष्ट नहीं हो सकता। वह केवलज्ञान की प्राप्ति पर्यन्त अथवा जिस भव में उत्पन्न हुआ उस भव पर्यन्त अवश्य रहता है।12 ज्ञाताधर्मकथांग में कहा गया है कि प्रवजित होते ही मल्ली भगवती को, साधारण मनुष्यों को न होने वाला मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया।13 मल्ली भगवती की शिष्ट सम्पदा में आठ सौ साधु मनःपर्ययज्ञानी थे।114 5. केवलज्ञान यह ज्ञान विशुद्धतम है। मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्यय क्षायोपशमिक ज्ञान है। केवलज्ञान क्षायिक ज्ञान है। क्षायिकभाव पूर्णत: अखण्ड एवं सकल होता है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा है कि केवलज्ञान का विषय सर्वद्रव्य और सर्वपर्याय है।15 ज्ञाताधर्मकथांग में मल्ली भगवती प्रसंग से केवलज्ञान के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा गया है- अरिहन्त मल्ली को अनन्त अर्थात् अनन्त पदार्थों को जानने वाला और सदा काल स्थायी, अनुत्तर- सर्वोत्कृष्ट, निर्व्याघात- सब प्रकार के व्याघातों से रहित- जिसमें देश या काल सम्बन्धी दूरी आदि कोई बाधा उपस्थित नहीं हो सकती, निरावरण- सब आवरणों से रहित, सम्पूर्ण और प्रतिपूर्ण केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई।16 मेघकुमार जब प्रव्रज्या के लिए जाते हैं तो सम्पूर्ण जनमेदिनी मंगलकामना करती है- अज्ञानान्धकार से रहित सर्वोत्तम केवलज्ञान को प्राप्त करो।"7 थावच्चापुत्र", शुक परिव्राजक, शैलक29, तैतलीपुत्र आदि के प्रसंग में उनके केवलज्ञान-केवलदर्शन की प्राप्ति का उल्लेख है। मल्ली की श्रमण सम्पदा में तीन हजार दो सौ केवलज्ञानी थे 1122 ज्ञाताधर्मकथांग में आचारमीमांसा आचार, विचार की खान से निकलने वाला हीरा है। आचार जब विचार से समन्वित या सम्पृक्त होता है तब जीवन में विवेक प्रकट होता है। सभी प्राणियों में मानव श्रेष्ठ है और सभी मानवों में ज्ञानी श्रेष्ठ हैं तथा सभी ज्ञानियों में आचारवान् श्रेष्ठ है। आचार मुक्तिमहल में प्रवेश करने का भव्य द्वार है। जैन ग्रंथों में आचार शब्द को अनेक रूपों में परिभाषित किया है 280
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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