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ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन “ आचाल्भ्यतेऽनेनातिनिविडं कर्मादीत्याचालः " अर्थात् जिसके द्वारा अतिसघन कर्मों को आचालित यानी प्रकम्पित किया जाता है वह आचाल अथवा आचार है। 123
आचार्य हरिभद्र ने शिष्ट व्यक्तियों द्वारा आचीर्ण ज्ञान-दर्शन आदि के आचरण - अभ्यास की विधि को आचार कहा है। 124
साधना की दृष्टि से सम्यक्दर्शन का स्थान पहला है। दर्शन के बिना ज्ञान, ज्ञान के बिना चारित्र और चारित्र के बिना मोक्ष प्राप्ति असंभव है । इसलिए आचारमीमांसा की पीठिका के रूप में सम्यक्दर्शन की विवेचना करणीय हैसम्यक्दर्शन
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प्रत्येक संसारी जीव दुःखी है और दुःखों से छुटकारा पाना चाहता है, पर उसे मोक्ष-मार्ग का ज्ञान न होने से वह दुःखों से मुक्त नहीं हो पाता है । समस्त जैन वाङ्मय में मोक्ष-मार्ग बतलाने का प्रयत्न किया गया है । तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया है- " सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्गः । 125 ज्ञाताधर्मकथांग के आधार पर कहा जा सकता है कि शंका, कांक्षा या विचिकित्सा से रहित होकर तत्त्वों पर श्रद्धा करना, सम्यग्दर्शन है। 126 सम्यक्त्व के अभाव में जीव मोक्ष का वरण कर सकता है। मिथ्यात्व की चर्चा करते हुए ज्ञाताधर्मकथांग में कहा गया है कि नन्दमणिकार श्रेष्ठी, साधुओं के दर्शन न होने से, उनकी उपासना न करने से, उनका उपदेश न मिलने से और वीतराग के वचन सुनने की इच्छा न होने से सम्यक्त्व के पर्यायों की क्रमशः हीनता होती चली जाने से और मिथ्यात्व के पर्यायों की क्रमशः वृद्धि होते रहने से, मिथ्यात्वी हो गया । 127
ज्ञाताधर्मकथांग में सम्यक्दर्शन अर्थात् तत्त्वों पर श्रद्धा से संबंधित अनेक प्रसंग आए हैं- अंडक नामक तीसरी कथा तो पूरी तरह सम्यक्दर्शन का बोध कराने वाली ही है। जिनदत्तपुत्र अपनी दृढ़ श्रद्धा के कारण ही मयूरी-बालक प्राप्त कर सका।128 मेघकुमार ने अपने मेरूप्रभ (हाथी) के भव में प्राणानुकम्पा से संसार परिमित किया । 129 जितशत्रु राजा का अमात्य सुबुद्धि जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था, सम्यग्दृष्टि श्रमणोपासक था । 130 उसने राजा जितशत्रु को भी सम्यग्दर्शन का बोध कराकर श्रावक पद पर प्रतिष्ठित किया । 131 राजगृह नगर का नन्दमणिकार भी श्रमणोपासक था, कालान्तर में वह मिथ्यात्वी हो गया लेकिन मेंढ़क के भव में उसने पुनः सम्यक्त्व को प्राप्त किया और अपने भवभ्रमण को कम कर लिया । 132
सम्यग्दर्शन पर आधारित आचार ही अपनी मंजिल यानी मोक्ष को प्राप्त
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