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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन जातिस्मृति ज्ञान की यह स्थिति जैन दर्शन के अनुसार केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है। तिर्यंञ्च प्राणी में भी कुछ विशेष कारणों से ईहा-अपोहमार्गणा-गवेषणा आदि करते हुए इस अतीन्द्रिय क्षमता का विकास हो सकता है। ज्ञाताधर्मकथांग के एक प्रसंग से यह स्पष्ट भी होता है कि एक तिर्यंञ्च प्राणी को किस प्रकार शुभ अध्यवसाय से जातिस्मरण ज्ञान होता है- नन्दा पुष्करिणी के पास स्थित दर्दुर एक ही दिशा में जाते हुए लोगों को देखता है, मन में विचार उत्पन्न होता है- सब एक ही दिशा की ओर क्यों जा रहे हैं? आते-जाते लोगों की बातचीत से समाधान मिलता है कि सब भगवान महावीर के दर्शन एवं वंदना करने जा रहे हैं। भीतर एक तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। चिन्तन एक ही दिशा में विशेष गहराई में चला जाता है और दर्दुर (मेढ़क) अतीत की स्मृति प्राप्त कर लेता है। अपने पूर्वभव के रूप में नंदमणिकार की स्थिति, भगवान महावीर आदि की स्मृति प्रत्यक्ष हो जाती है और वह उसी समय श्रावकोचित व्रतों को अंगीकार कर लेता है और भगवान महावीर को वन्दनार्थ प्रस्थान करता है।' 2. श्रुतज्ञान शब्द, संकेत आदि द्रव्यश्रुत के सहारे होने वाले, दूसरों को समझाने में समर्थ ज्ञान को श्रुतज्ञान कहा जाता है। केवल श्रुतज्ञान ही वचनात्मक है, परार्थ है। तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार श्रुत ज्ञान मतिपूर्वक होता है और इसके दो भेद हैंअंगबाह्य और अंगप्रविष्ट । अंगबाह्य अनेक प्रकार का है जबकि अंगप्रविष्ट के बारह भेद हैं। ज्ञाताधर्मकथांग में इसे 'मइपुव्वएणं' शब्द से प्रकट किया गया है। राजा श्रेणिक रानी धारिणी के स्वप्न का फलादेश अपने स्वाभाविक मतिपूर्वक बुद्धि विज्ञान अर्थात् श्रुतज्ञान से बतला देता है।" ___ आवश्यक नियुक्ति में कहा गया है कि जितने अक्षर है और उनके जितने विविध संयोग हैं उतने ही श्रुतज्ञान के भेद हैं, अत: उसके सारे भेद गिनाना संभव नहीं है। श्रुतज्ञान के चौदह मुख्य प्रकार हैं- अक्षर, संज्ञी, सम्यक्, सादिक, सपर्यवसित, गमिक और अंगप्रविष्ट- ये सात तथा अनक्षर, असंज्ञी, मिथ्या, अनादिक, अपर्यवसित, अगमिक तथा अंगबाह्य ये सात इनसे विपरीत हैं।" इस प्रकार कहा जा सकता है कि समूचे भाषात्मक व्यवहार की सार्थकता का मेरूदण्ड है- श्रुतज्ञान । तीर्थंकर महावीर द्वारा प्ररूपित सम्पूर्ण आगम 278
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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