SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन ज्ञान। यह ज्ञान मतिज्ञान का ही एक भेद है । इस ज्ञान के माध्यम से व्यक्ति इस जीवन की सीमा पार कर इस जीवन से परे एक या अनेक जन्मों को जानने व देखने लगता है। जैन दर्शन के अनुसार कोई जीव अपने अतीत के अनेक संज्ञी जन्मों तक लौट सकता है अर्थात् अपने पिछले अनेक जन्मों को देख व जान सकता है। बीच में यदि उसका कोई असंज्ञी भव आ गया तो उससे आगे वह नहीं देख सकता। साथ ही पूर्व के संज्ञी भवों में यदि उसे कहीं जातिस्मृति या अवधिज्ञान हुआ हो तो उस आधार पर असंख्यात जन्मों की घटनाओं का भी वह साक्षात्कार कर सकता है 184 जातिस्मृति का उपादान कारण धारणा है। धारणा जितनी चिरस्थायी होती है, प्रतिष्ठा और कोष्ठा बुद्धि का जितना विकास होता है, जातिस्मृति की संभावनाएँ उतनी ही अधिक हो जाती है। पूर्व जन्म में अनुभूत वस्तुओं, परिचित व्यक्तियों आदि को देखकर, तत्सदृश घटनाओं को देखकर या सुनकर जब व्यक्ति ईहाअपोह-मार्गणा- गवेषणा करता है तो लेश्या विशुद्धि, चित्त की एकाग्रता एवं संस्कार - प्रबोध से जातिस्मरण ज्ञान हो जाता है । श्री भिक्षु आगम विषय कोष में कहा गया है कि जब व्यक्ति अपनी बुद्धि विशिष्ट प्रयोग करते हुए अपने अतीत में प्रवेश करता है तब अतीत के जीवन को, अतीत के जीवन से जुड़ी घटनाओं को पूर्णतः यथार्थ रूप में जान, देख सकता है, इसे जातिस्मृति कहा जाता है अर्थात् जब व्यक्ति की चित्तवृत्ति सघन रूप से एकाग्र हो जाती है, विकल्प शान्त हो जाते हैं और मन की ऊहापोह शान्त हो जाती है तब व्यक्ति को जाति-स्मरण ज्ञान की उपलब्धि होती है । 25 ज्ञाताधर्मकथांग के अनेक प्रसंग जाति-स्मरण से जुड़े हुए हैं। मेघकुमार जब अपने अतीत में प्रवेश कर स्पष्ट रूप से जान लेता है कि इस शरीर से पहले वह किस रूप में मेरूप्रभ व सुमेरूप्रभ हाथी के रूप में अपनी जीवन यात्रा तय कर रहा था । " मेघ के जातिस्मरण का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मेघ को अपने पूर्व भवों को महावीर से सुनकर, शुभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय, विशुद्ध होती लेश्याओं व ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय के क्षयोपशम से उस विषय में ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा करते हुए जाति-स्मरण ज्ञान हुआ 187 इसी प्रकार पोट्टिल देव का निमित्त पाक तैतलिपुत्र को भी शुभ परिणाम उत्पन्न होने से जातिस्मरण ज्ञान की प्राप्ति हुई 18 277
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy