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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन का प्रत्यय ईहा है। (स) अवाय - ईहितार्थ का विशेष निर्णय अवाय है ।" निर्णयात्मक ज्ञान अवाय है जैसे- 'यह शब्द ही है । ' (द) धारणा - अवाय के बाद धारणा होती है । धारणा में ज्ञान इतना दृढ़ हो जाता है कि वह स्मृति का कारण बनता है । धारणा को स्मृति का हेतु कहा गया है।” अवग्रह - ईहा - अवाय - धारणा - इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रक्रिया के चार चरण हैं । ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि स्वप्नपाठकों ने धारिणी के स्वप्न का फलादेश इसी प्रक्रिया से बताया। 78 (2) अश्रुतनिश्रित - जिसमें श्रुतज्ञान के संस्कार की तनिक भी अपेक्षा नहीं रहती, वह अश्रुनिश्रित मतिज्ञान कहलाता है। इसके भी चार प्रकार हैं(अ) औत्पत्तिकी बुद्धि- सहसा उत्पन्न होने वाली सूझबूझ । (ब) वैनयिकी बुद्धि - विनय से उत्पन्न होने वाली बुद्धि । (स) कार्मिकी बुद्धि- कोई भी कार्य करते-करते, चिरकालीन अभ्यास से जो दक्षता प्राप्त होती है वह कर्मजा, कार्मिकी या कर्मसमुत्था बुद्धि कही जाती है। (द) पारिणामिकी बुद्धि- उम्र के परिपाक से जीवन के विभिन्न अनुभवों से प्राप्त होने वाली बुद्धि । ज्ञाताधर्मकथांग में इन चारों बुद्धियों का उल्लेख विभिन्न प्रसंगों में आया है। अभयकुमार औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी व पारिणामिकी बुद्धि से संपृक्त था ।" राजा श्रेणिक धारिणी के दोहद की सम्पूर्ति हेतु इन चारों बुद्धियों से चिन्तन करता है।8° राजा शैलक के पंथक आदि पाँच सौ मंत्री इन चारों बुद्धियों से सम्पन्न थे।" मल्ली के टूटे कुण्डल जोड़ने के लिए विदेहराज कुम्भ द्वारा बुलवाए गए स्वर्णकार भी उपर्युक्त चारों प्रकार की बुद्धियों के धारक थे। युद्ध में पराजित राजा कुम्भ, मिथिला राजधानी को घिरी जानकर, जितशत्रु आदि छहों राजाओं की सामरिक कमजोरियों का पता लगाने के लिए इन चारों बुद्धियों का सहारा लेता है 13 जातिस्मरण ज्ञान पूर्वजन्म व पुनर्जन्म की प्रामाणिकता का एक सशक्त माध्यम है जातिस्मृति 276
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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