________________
ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन तिर्यञ्च के सभी भेद आ जाते हैं। 3. मनुष्य गति
मनुष्य गति नामकर्म के उदय वाले जीवों को मनुष्य कहते हैं। जो जीव स्वभाव से भद्र, विनयवान, दयालु तथा किसी दूसरे से ईर्ष्या नहीं करते हैं, वे मरकर प्रायः मनुष्य गति में आते हैं। मेघकुमार ने अपने पूर्व के हाथी भव में अनुकम्पा भाव के कारण मनुष्यायु का बंध किया।48 4. देव गति
देव गति नामकर्म के उदय वाले जीवों को देवता कहते हैं। देव के चार भेद हैं- भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक।
ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि मेघ नामक अणगार चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा (सभी ज्योतिष्क) रूप ज्योतिषचक्र से बहुत योजन दूर जाकर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोकों तथा तीन सौ अठारह नवग्रैवेयक के विमानवासों को लांघकर विजय नामक अनुत्तर महाविमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ। इसी प्रकार लौकान्तिक देवों का नामोल्लेख भी मिलता है। जिस समय अरहन्त मल्ली ने तीन सौ अट्ठासी करोड़ अस्सी लाख जितनी अर्थसम्पदा दान देकर 'मैं दीक्षा ग्रहण करूं', ऐसा मन में निश्चय किया उस समय सारस्वत, वह्नि, आदित्य, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय व रिष्ट आदि ने नौ लोकान्तिक देव नृत्य-गीत के शब्दों के साथ दिव्य भोग भोगते हुए विचर रहे थे।
ज्ञाताधर्मकथांग में कुछ देवों की स्थिति यानी आयु का उल्लेख भी किया गया है', यथा- ब्रह्मलोक नामक स्वर्ग की स्थिति दस सागरोपम, विजय नामक अनुत्तर विमान की तैंतीस सागरोपम और जयन्त नामक अनुत्तर विमान के देवों की स्थिति बत्तीस सागरोपम4 बताई गई है। ___भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों ने तीर्थंकर मल्ली का जन्माभिषेक किया। देवों के साथ मनुष्यों का सम्पर्क
ज्ञाताधर्मकथांग के विभिन्न प्रसंगों में देव जाति के अस्तित्व को स्वीकार तो किया ही है और साथ ही उन देवों का मनुष्य जाति के साथ सम्पर्क होना या करना भी बतलाया गया है।
271