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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन निवारण करने के लिए औदारिक शरीर से क्षेत्रान्तर में जाना असंभव समझकर अपनी विशिष्ट ऋद्धि का प्रयोग करते हुए जो हस्त-प्रमाण छोटा शरीर निर्माण करते हैं, वह आहारक शरीर कहलाता है। 4. तैजस् शरीर जो शरीर तेजोमय होने के कारण ग्रहण किए हुए आहार आदि के परिपाक का हेतु और दीप्ति का निमित्त हो, वह तैजस् शरीर है। 5. कार्मण शरीर क्षण-प्रतिक्षण ग्रहण किया जाने वाला कर्म का समूह ही कार्मण शरीर कहलाता है। तेजस् तथा कार्मण शरीर प्रत्येक संसारी जीव के होते हैं। गति गति नाम कर्म के उदय से जीव की पर्याय विशेष को अथवा जीव की संसारी अवस्था विशेष को गति कहते हैं। गति चार होती हैं, ज्ञाताधर्मकथांग के संदर्भ में इनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है1. नरक गति घोर पापाचरण करने वाले जीव अपने पापों को भोगने के लिए अधोलोक के जिन स्थानों में पैदा होते हैं, उन स्थानों को नरक कहते हैं । ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि नागश्री ब्राह्मणी को अपने पापाचरण के कारण अर्थात् मासखमण का पारणा करने वाले धर्मरूचि अणगार को कड़वे तुम्बे का शाक देकर उनके प्राणों का हरण करने के कारण उसे कई बार नरक की यातनाएँ झेलनी पड़ी। 2. तिर्यञ्च गति जिसके तिर्यञ्च गति नाम कर्म का उदय हो वे तिर्यञ्च कहलाते हैं। जो जीव झूठ बोलते हैं, छल करते हैं, व्यापार आदि में धोखा करते हैं, वे मरकर । एकेन्द्रिय, पशु-पक्षी आदि रूप में तिर्यञ्च भव में जाते हैं। नन्दमणियार का जीव पुष्करिणी में आसक्त होने के कारण तिर्यञ्च योनि में जन्म लेता है। इसी प्रकार नागश्री का जीव नरक का आयुष्य पूर्णकर तिर्यञ्च गति की मत्स्ययोनि व उरगयोनि में जन्म लेता है। तिर्यञ्च के अड़तालीस भेद बताए गए हैं। प्राण, भूत, जीव, सत्व" में 270
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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