SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 44 अणगार सुदर्शन से कहते हैं, .....विणयमूलएणं धम्मेणं अणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ खवेत्ता लोयग्गपइट्ठाणे भवंति। 28 इसी बात को प्रकट करते हुए सुधर्मा स्वामी कहते हैं- "जो श्रमण पाँच इन्द्रियों के कामभोगों में आसक्त नहीं होता और अनुरक्त नहीं होता, वह इसी भव में बहुत से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं का पूजनीय होता है और परलोक में भी दुःख नहीं पाता है..... उसे अनादि अनन्त संसार - अटवी में चतुरशीति शत सहस्र योनियों में भ्रमण नहीं करना पड़ता। वह अनुक्रम से संसार - कान्तार को पार कर जाता हैसिद्धि को प्राप्त कर लेता है। 29 लेश्या जिसके द्वारा जीव अपने को पुण्य और पाप से लिप्त करे उसको लेश्या कहते हैं |3° तत्त्वार्थवार्तिक में कषाय के उदय से अनुरक्त योगप्रवृत्ति को लेश्या कहा है ।" कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल - ये लेश्या के छः प्रकार हैं। प्रथम तीन अशुभ तथा अंतिम तीन उत्तरोत्तर शुभ होती है । ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार को शुभ परिणामों एवं प्रशस्त अध्यवसायों एवं विशुद्ध होती हुई लेश्याओं के कारण जाति स्मरण ज्ञान होता है। 32 धर्मरूचि अणगार के पास तेजोलब्धि थी लेकिन वे उसका उपयोग नहीं करते थे । कषाय जो आत्मा को कषे अर्थात् चारों गतियों में भटकाकर दुःख दे, कषाय है | 34 क्रोध, मान, माया और लोभ- ये चार कषाय हैं। जिसकी कषाय जितनी अधिक मंद या पतली- कृश होगी वो उतना ही जल्दी मोक्षगामी होगा । ज्ञाताधर्मकथांग में मेघमुनि मंद कषाय वाले थे। अतः मेघकुमार अतिशीघ्र संसार यानी भव भ्रमण को समाप्त करने वाले हैं। पर्याप्त आत्मा की एक शक्ति विशेष को पर्याप्ति कहते हैं । वह शक्ति पुद्गलों को ग्रहण करती है और उन्हें शरीर, इन्द्रियादि के रूप में परिणत करती है । जीव अपने उत्पत्ति स्थान पर पहुँचकर प्रथम समय में जिन पुद्गलों को ग्रहण करता है और तदन्तर भी जिन पुद्गलों को ग्रहण करता है उनको शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन के रूप में परिवर्तित करता है। पुद्गलों को इस रूप में परिणत करने की शक्ति को ही पर्याप्ति कहा जाता है । 36 पर्याप्तियाँ छः प्रकार की होती हैं - आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास 268
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy