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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन टीकाकार की 2 गाथाएँ उद्धृत कर तिर्यंच में महाव्रत स्वीकार की बात कही है। किन्तु श्रीमद् भगवतीसूत्र के शतक 8 उद्देशक 5 में श्रावक व्रत ग्रहण करने के करण योग की अपेक्षा 49 विकल्प (भंग) बताये हैं। उनमें से प्रथम 3 करण 3 योग से त्याग को सर्वश्रेष्ठ विकल्प बताया है इससे श्रावक 11वीं उपासक प्रतिमा एवं मारंणितिकि संलेखना स्वीकार करने का उल्लेख आता है। इसमें करण योग की अपेक्षा भले ही छुट न हो पर महाव्रत में व इसमें अंतर है। अत: यह महाव्रत रूप चारित्र नहीं है अपितु देशविरति चारित्र का ही एक विकल्प होने से तिर्यंच श्रावक के व्रत ग्रहण के अंतर्गत है न कि महाव्रत रूप सर्वविरति के अंतर्गत। मूल पाठ में जिस प्रकार से इसका उल्लेख किया गया है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि आगमकार को भी उसके प्रत्याख्यान में कोई अनौचित्य नहीं लगता। थावच्चापुत्र तथा सुव्रता आर्या पाँच समिति व तीन गुप्ति का पालन कर संवर के माध्यम से कर्मों को रोकते थे। 7. निर्जरा तपस्या के द्वारा कर्मों का विच्छेद होने पर आत्मा की जो उज्ज्वलता होती है, वह निर्जरा है। तप के 12 भेद ही निर्जरा के 12 भेद हैं। इन भेदों का ज्ञाताधर्मकथांग के संदर्भ में विवेचन इसी अध्याय के आचार-मीमांसा' शीर्षक में किया गया है। 8. बंध आत्म-प्रदेशों का कर्म पुद्गलों के साथ क्षीर-नीर की तरह मिल जाना बंध तत्त्व है। प्रकृति बंध, स्थिति बंध, अनुभाग बंध और प्रदेश बंध- ये बंध के चार प्रकार हैं। ज्ञाताधर्मकथांग के मूल पाठ में बंध के संदर्भ में 'निबद्धाउए' और 'बद्धपएसिए' इन दो पदों का प्रयोग हुआ है। टीकाकार के मतानुसार बद्धाउए' पद से प्रकृति, स्थिति और अनुभाग बंध सूचित किए गए हैं और 'बद्धपएसिए' पद से प्रदेश बंध का कथन किया गया है। 9. मोक्ष आत्मा का सब प्रकार के कर्मों से सम्पूर्ण रूप में सदा के लिए छूट जाना मोक्ष तत्त्व है।” सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप की आराधना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्ञाताधर्मकथांग में मोक्षमार्ग का निर्वचन करते हुए थावच्चापुत्र 267
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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