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________________ जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग नाम आया है। भाष्यकार ने लिखा है- उदाहरणों के द्वारा जिसमें धर्म का कथन किया है। संस्कृत साहित्य में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' मिलता है। आचार्य मलयगिरि व आचार्य अभयदेव ने उदाहरण प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनकी दृष्टि से प्रथम अध्ययन में ज्ञात है और दूसरे अध्ययन में धर्मकथा है। ___पं. बेचरदस दोशी, डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री का अभिमत है कि ज्ञातपुत्र महावीर की धर्मकथा का प्ररूपण होने से प्रस्तुत अंग को उक्त नाम से अभिहित किया गया है। श्वेताम्बर आगम साहित्य के अनुसार भगवान महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' था। कल्पसूत्र", आचारांग, सूत्रकृतांग", भगवती, उत्तराध्ययन और दशवैकालिक में उनके नाम के रूप में 'ज्ञात' शब्द का प्रयोग हुआ है। विभिन्न बौद्धपिटकों में भी भगवान महावीर का उल्लेख "निगंठनातपुत्र" के रूप में किया गया है। _णाह धम्मकहा का अर्थ नाथ धर्मकथा किया जाता है। जिसका तात्पर्य है- नाथ- तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा। समवायांग और नंदीसूत्र में आगमों का जो परिचय दिया गया है उसके आधार से 'ज्ञातवंशी महावीर की धर्मकथा' यह अर्थ संगत नहीं लगता। वहाँ पर यह स्पष्ट किया गया है कि ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। आलोच्य आगम के प्रथम अध्ययन का नाम 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्तज्ञात) है। यहाँ पर ज्ञात का अर्थ उदाहरण ही सही प्रतीत होता है। इसमें उदाहरण प्रधान धर्मकथाएँ हैं। इन कथाओं में उन धीरोदात्त साधकों का वर्णन है जो भयंकर परीषह उपस्थित होने पर भी सुमेरु की तरह अकंप रहे। इसमें परिमित वाचनाएँ, वेढ, छन्द, श्लोक, नियुक्तियाँ, संग्रहणियाँ व प्रतिपत्तियाँ संख्यात-संख्यात हैं। इसके दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में उन्नीस अध्ययन हैं और द्वितीय श्रुतस्कंध में दस वर्ग हैं। दोनों श्रुतस्कंधों के 29 उद्देशन काल हैं, 29 समुद्देशन काल हैं, 573000 पद हैं, संख्यात अक्षर हैं, अनंतगम, अनंत पर्याय, परिमित त्रस, अनन्त स्थावर आदि का वर्णन है। इसका वर्तमान में पद परिमाण 5500 श्लोक प्रमाण है। प्रथम श्रुतस्कंध में कितनी ही कलाएँ-ऐतिहासिक व्यक्तियों से संबंधित 25
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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