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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन दृष्टिवाद परिकर्म सूत्र अनुयोग मूलप्रथमानुयोग गंडिकानुयोग पूर्वगत उत्पाद अग्रायणीय वीर्यानुप्रवाद अस्तिनास्तिप्रवाद ज्ञान- प्रवाद 24 सत्यप्रवाद आत्मप्रवाद कर्मप्रवाद प्रत्याख्यानप्रवाद विद्यानुप्रवाद कल्याण प्राणवाय क्रियाविशाल लोकबिन्दुसार चूलिका जलगता स्थलगता मायागता आकाशगता रूपगत आगमों की संख्या जैन आगम साहित्य की संख्या के सम्बन्ध में अनेक मतभेद हैं । श्वेताम्बर स्थानकवासी व तेरापंथ सम्प्रदाय बत्तीस आगम मानता है, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय पैंतालीस आगम मानते हैं, इनमें ही कुछ गच्छ चौरासी आगम भी मानते हैं । दिगम्बर परम्परा आगम के अस्तित्व को स्वीकार तो करती है, परन्तु उनकी मान्यतानुसार सभी आगम विच्छिन्न हो गए हैं। ज्ञाताधर्मकथांग : द्वादशांगी में स्थान अंग साहित्य में ज्ञाताधर्मकथांग का छठा स्थान है । इसके दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में ज्ञात यानी उदाहरण और द्वितीय श्रुतस्कंध में धर्मकथाएँ हैं इसलिए इस आगम को 'णायाधम्मकहाओ' कहा जाता है। आचार्य अभयदेव ने अपनी टीका में इसी अर्थ को स्पष्ट किया है । तत्त्वार्थभाष्य में 'ज्ञाताधर्मकथा'
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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