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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा कलाचार्य के पास भेजा गया। वैदिक काल में प्रायः प्रत्येक विद्वान गृहस्थ का घर विद्यालय होता था।13 महाभारत में कण्व, व्यास, भारद्वाज और परशुराम आदि के आश्रमों के वर्णन मिलते हैं।14 रामायणकालीन चित्रकूट में वाल्मिीकि का आश्रम था।15 2. मठ शिक्षार्थी अध्ययन करने के लिए मठ में भी जाते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में मठ के लिए आवसहे' शब्द आया है। शुक नामक परिव्राजक सौगंधिका नगरी स्थित मठ में आया।216 3. चैत्य/उपाश्रय ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षालय के रूप में चैत्य और उपाश्रय का उल्लेख भी मिलता है। भगवान महावीर धर्मोपदेश देने के लिए राजगृहनगर के गुणशील चैत्य में पधारे ।217 धर्मघोष नामक स्थविर राजगृहनगर में यथायोग्य उपाश्रय की याचना करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित कर विचरने लगे।218 आर्य सुधर्मा धर्मोपदेश देने के लिए गुणशील चैत्य में पधारे ।19 साधुओं के निवास स्थान अर्थात् उपाश्रयों में भी विद्याध्ययन हुआ करता था। ऐसे स्थानों पर वे ही साधु अध्यापन के अधिकारी होते थे, जो उपाध्याय के समीप रहकर आगम का पूर्ण रूप से अभ्यास कर चुके होते थे।220 3. श्रेणियाँ श्रेणियों का महत्व शिक्षा केन्द्र के रूप में भी था। श्रेणियों का संगठन मुख्य रूप से व्यापारियों द्वारा किया गया था। ज्ञाताधर्मकथांग में श्रेणियों की संख्या अट्ठारह बतलाई गई है।221 कुम्भकार222, सुवर्णकार223, चित्रकार224, सार्थवाह225 व नौकावणिक226 आदि श्रेणियों का उल्लेख किया गया है। बौद्ध ग्रंथों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि सुर्पारक की नाविक श्रेणी ने अपने सदस्यों को नौ-परिवहन में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की थी।27 4. चल विद्यालय (श्रमण, स्थविर, परिव्राजक) साधु अपने आचारानुसार एक स्थान पर स्थायी वास नहीं कर सकता प्रत्युत् विभिन्न नगर-ग्रामों में पदयात्रा करता हुआ तत्त्वोपदेश देता है तथा अपनी साधना करता है। वह वर्षाकाल के चार माह एक स्थान पर स्थिर होकर रहता है। श्रमण भगवान महावीर ग्रामानुग्राम से विहार करते हुए राजगृह नगर के (231
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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