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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन उद्वर्तन, स्नेहपान, वमन, विरेचन, स्वेदन, अवदहन, अपस्नान व अनुवासना
आदि विधियों द्वारा रोगनिदान के प्रयास किए।12 इन विधियों से सिद्ध होता है कि उस समय आयुर्वेद चिकित्साशास्त्र की प्रधानता थी। ज्योतिष
ज्ञाताधर्मकथांग में ग्रह-नक्षत्र, मुहूर्त, स्वप्नफल आदि ज्योतिष से संबंधित विषयों का उल्लेख मिलता है। मेघकुमार को शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में कलाचार्य के पास भेजा गया।13 मेघकुमार, थावच्चापुत्र15 और सुकुमालिका का विवाह शुभ नक्षत्र में किया गया। थावच्चापुत्र17 की दीक्षा भी शुभ तिथि, नक्षत्र व मुहूर्त में हुई। अर्हन्नक'18 और माकन्दी पुत्र'' ने व्यापारार्थ प्रस्थान शुभ नक्षत्र व मुहूर्त देखकर किया। उपर्युक्त उदाहरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि तत्कालीन शिक्षा में ज्योतिषशास्त्र का भी एक विषय के रूप में अध्ययनअध्यापन किया जाता था। भूगोल
___ ज्ञाताधर्मकथांग के एक प्रसंग में हस्तशीर्ष नगर के सांयात्रिक नौकावणिकों की समुद्र यात्रा के समय अकस्मात् तूफान आने के कारण नाविक दिशा विमूढ हो गया, फिर तुफान शान्त होने पर उसकी दिशाविमूढता विनष्ट हो गई और वे अपने गन्तव्य कालिक द्वीप पहुँच गए।120 इस प्रसंग से स्पष्ट होता है कि दिशाओं की शिक्षा भी दी जाती थी, जो भुगोल का ही एक अंग है। विज्ञान
ज्ञाताधर्मकथांग में विज्ञान का नामोल्लेख एक पृथक विषय के रूप में तो नहीं मिलता, लेकिन कुछ प्रसंग ऐसे है जो विज्ञान विषय की उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। चम्पानगरी के मंत्री सुबुद्धि ने खाई के पानी को वैज्ञानिक विधि से शुद्ध कर अपने राजा जितशत्रु का पिलाया।21 भाषा व व्याकरण
ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित 72 कलाओं में मागधी और प्राकृत भाषा के अध्ययन का उल्लेख मिलता है।122 द्रौपदी को क्रीड़ा करवाने वाली धाय स्फुट (प्रकट अर्थ वाले), विशद (निर्मल अक्षरों वाले), विशुद्ध (शब्द एवं अर्थ के दोषों से रहित), रिभित (स्वर की घोलना सहित), गंभीर तथा मधुर बोलने वाली थी। इससे स्पष्ट है कि शब्द के विभिन्न रूपों और उनके उच्चारण की जानकारी उपलब्ध थी। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित कलाओं में गीतिछंद बनाना
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