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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा तथा श्लोक बनाना (अनुष्टुप छन्द)124 भी शामिल है, जो काव्यशास्त्र की प्रौढ़ता को अभिव्यक्त करते हैं। मेघकुमार अट्ठारह प्रकार की देशी भाषाओं तथा गीति संरचना में निपुण हो गया।25 व्याकरण के लिए 'वागरणाई' शब्द का उल्लेख मिलता है। गणित ज्ञाताधर्मकथांग में गणित के लिए 'गणियं' शब्द का उल्लेख मिलता है।26 अंकों का ज्ञान भी शिक्षा का एक विषय था। इसको सिद्ध करने के लिए अग्रांकित प्रसंग प्रस्तावित है- मेघकुमार मृत्योपरान्त ज्योतिषचक्र से बहुत योजन, बहुत सैंकड़ों योजन, हजारों, लाखों, करोड़ों तथा कोड़ाकोड़ी योजन लांघकर अनुत्तर महाविमान में देव के रूप में उत्पन्न हुआ।27 माप-तौल की असई, पसई, सेतिका, कुड़व तथा प्रस्थक28 इकाइयाँ गणित विषय की शिक्षा को प्रमाणित करती हैं। माप-तौल की इकाई के रूप में मान, उन्मान व प्रमाण का उल्लेख भी आया है। दैवीविद्या कच्छुल्ल नामक नारद आकाशगामी, संचरणी, आवरणी, अवतरणी, उत्पतनी, श्लेषणी, संक्रामणी, अभियोगिनी, प्रज्ञप्ति, गमनी, स्तंभिनी आदि बहुत-सी विद्याओं में प्रवीण था।129 पद्मनाभ के मित्र पूर्व संगतिक देव ने द्रौपदी को अवस्वापिनी विद्या से निद्रा में सुला दिया।30 इस प्रकार स्पष्ट है कि विभिन्न प्रकार की दैवी विद्याओं की भी शिक्षा दी जाती थी। वाणिज्यशास्त्र ज्ञाताधर्मकथांग में वाणिज्यशास्त्र का उल्लेख किसी पृथक् विषय और उसकी औपचारिक शिक्षा के रूप में नहीं मिलता है, लेकिन विभिन्न उद्धरणों में देशी व विदेशी व्यापार तथा समूह के रूप में व्यापारिक यात्राओं का उल्लेख मिलता है। धन्य सार्थवाह चंपानगरी से व्यापारार्थ अपने नगर के विभिन्न जातिसमुदाय के लोगों को लेकर अहिछत्रा नगरी की ओर प्रस्थान करता है तथा सहगामी लोगों को आवश्यक निर्देश-आदेश देता है।31 इसी प्रकार अर्हन्नक चंपानगरी से मिथिलानगरी व्यापारार्थ अपने ज्ञातीजनों के साथ जाता है।132 इस प्रकार कहा जा सकता है कि तत्कालीन व्यापारी-समुदाय आधुनिक चैम्बर ऑफ कॉमर्स के समान संगठित था। वे अपनी व्यापारिक यात्राएँ व क्रियाकलाप सामूहिक रूप से करते थे। 221'
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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