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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन सके। 25
जॉन डिवी के वातावरण के साथ समन्वय की बात करते हुए शिक्षा को आन्तरिक और बाह्य दोनों शक्तियों की उद्घाटक बतलाया है। भगवती आराधना के अनुसार
"शिक्षा श्रुतस्य अध्ययनमिह शिक्षाब्देनोच्यते।''26
अर्थात् शास्त्रों का अध्ययन ही शिक्षा है। यह शिक्षा की अत्यन्त संकुचित परिभाषा है। टैगोर का मन्तव्य था
"शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बुद्धि, भावना और इच्छाशक्ति का समान रूप से विकास करने में सहायक हो और साथ ही जो प्रकृति से सामंजस्य और अध्ययन के विचित्र विषयों में संतुलन पैदा कर सके।''27
प्रस्तुत परिभाषा पूर्ण परिभाषा कही जा सकती है लेकिन 'विचित्र विषय' शब्द एक प्रश्न चिह्न छोड़ जाता है, जिसको टैगोर ने समाधायित करने का प्रयास नहीं किया है। विनोबा भावे के अनुसार
"शिक्षण कभी जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। जीवन से विमुख 'केवल शिक्षण' सच्चा शिक्षण हो ही नहीं सकता। प्रत्यक्ष जीवन के क्षेत्र में जीवन जीते-जीते, जीवन की जिम्मेदारियाँ निभाते हुए जो सवाल पैदा हुए, उनके जवाब पाना ही सच्चा शिक्षण है।"28
प्रस्तुत परिभाषा में विनोबा ने शिक्षण और जीवन में समवाय को स्पष्ट किया है। उन्होंने शिक्षा को पूर्णतः अनौपचारिक प्रक्रिया माना है। आचार्य तुलसी के अनुसार
"शिक्षा ही वह माध्यम है, जो व्यक्ति-चेतना और समूह-चेतना को सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों से अनुप्राणित करती है।' '29
प्रस्तुत परिभाषा में शिक्षा को समग्र रूप में व्यक्त किया गया है। शिक्षा को व्यक्ति व समूह-चेतना से जोड़कर उसके द्वारा सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विकास की बात कर शिक्षा के व्यापक स्वरूप को अभिव्यक्त किया गया। जैनेन्द्र कुमार के अनुसार
"शिक्षा मिलती है, दी नहीं जा जाती अर्थात् सच्ची और उपयोगी शिक्षा
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